महिला दिवस के मौके पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में शक्ति पर्व का आयोजन किया गया। नारी संवाद प्रकल्प में वरिष्ठ नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने भाव कथन पेश किया। आयोजन के प्रात:कालीन सत्र में सोनल मानसिंह ने शास्त्रीय नृत्य की अवधारणा, शक्ति व शिव और नृत्य में रस व आनंद की अनुभूति के संदर्भ में व्याख्या की। भाव कथन के माध्यम से उन्होंने नृत्य के बारे में कहा कि यह श्रेष्ठतम कला रूप है। मानसिंह ने कहा कि नृत्य में सारी कलाएं समाहित हैं। नृत्य में संगीत, शिल्प, साहित्य, कविता, फूलों की गठन, शृंगार की कलाएं सब कुछ शामिल होती हैं। नृत्य पूरे शरीर, मन और आत्मा का जुड़ाव है। इन सबसे ऊपर नृत्य जीवन जीने की कला है। यह जीवन में संघर्ष करने की कला भी सिखाती है। उन्होंने कहा कि हम जब गुरु के सानिध्य में जाते हैं तो उस समय शिष्य गीली मिट्टी की तरह होता है जिसे साधना और तपस्या के जरिए गुरु ही संवारते हैं।

उन्होंने महर्षि वेदव्यास रचित श्रीदेवी महाभागवत पुराण के अंशों पर आधारित देवी के अवतरण की कथा को पेश किया। रचना ‘ततो भगवती ज्ञात्वा’ पर आधारित इस प्रस्तुति का आरंभ देवी महात्म्य के वर्णन से होता है। इस अंश में नृत्यांगना सोनल मानसिंह देवी की दिव्यता को आंगिक भाव, हस्तकों और मुद्राओं से व्यक्त करती हैं। सृष्टि में तब न कालचक्र था, न चंद्र-सूर्य-नक्षत्र कुछ भी नहीं थे। तब महर्षि वेदव्यास को देवी के चरण तल पर अंकित देवी पुराण के श्लोक व मंत्रों के दर्शन होते हैं। सत्व, राजस व तमस गुणों के जरिए महादेवी का प्रादुर्भाव होता है। वह ब्रह्मा, विष्णु व शिव को सृष्टि के निर्माण, पोषण व संहार का निर्देश देती हैं। फिर वह त्रिदेव की परीक्षा लेती हैं और भगवान शिव के साथ शक्ति के रूप में अपने अवतरण का वरदान देती हैं। माया के बल से योग-वियोग से ही शिव-शक्ति की परमप्रीति बनी रहेगी। उन्होंने वाचन, अभिनय और भावों के जरिए देवी के रूप का वर्णन किया।
अगले अंश में उन्होंने देवी दुर्गा के महिषासुरमर्दिनी रूप का विवेचन पेश किया। इसमें उन्होंने देवी के नारी विग्रह रूप यानी मूर्ति की विशिष्टता का वर्णन पेश किया। उन्होंने देवी के चौबीस नाम, अठारह भुजाओं, 18 आयुधों व उनके गुणों की विवेचन बहुत ही प्रभावशाली अंदाज में किया।

इस भाव प्रदर्शन के दौरान उन्होंने कहा कि हमारे समाज में नारी शोषण चारों युग में था। कलियुग में हमलोग जीवित हैं तो हमें नारी पर अत्याचार ज्यादा नजर आता है। हमें ज्यादा से ज्यादा पराशक्ति का चिंतन करना जरूरी है ताकि दैवी शक्ति जागृत हो और हमारा राष्ट्र इस तरह के दुर्गुणों से दूर रहे। अगले अंश में मानसिंह ने शिव पुराण की भस्मासुर व मोहिनी कथा के भावों का चित्रण किया। इसे हाल ही एक समारोह में उनके नृत्य रचना ‘दिव्य लोक’ में कलाकारों ने पेश किया था। इस पेशकश में सरायकेला छऊ के छंदों पर कलाकारों ने अंग व पद संचालन मोहक अंदाज में प्रयोग किया। साथ ही, भ्रमरी, उत्प्लावन व चारी भेद का समावेश भी सुंदर था। नायिका मोहिनी के रूप में नृत्यांगना ने मोहक अंदाज में ओडिशी नृत्य पेश किया।

इस क्रम में तबले और पखावज के ताल आवर्तन पर कलाकारों की जुगलबंदी मनोरम थी। उसे भाव के जरिए सोनल मानसिंह ने शिव स्तवन के रूप में पेश किया। उनका यह भाव प्रदर्शन काफी सशक्त और भावपूर्ण था। उन्होंने राग भोपाली पर आधारित रचना ‘तू ही सूर्य, तू ही चंद्र’ पर भी भावों को दर्शाया। इसके अलावा, आदि शंकराचार्य की रचना ‘अर्धनारीश्वर’ पर भावों को प्रदर्शित किया। यह रचना ‘चांपेय गौरार्धशरीर कायै’ पर आधारित थी। इस प्रस्तुति में शरीर के बाम भाग से देवी पार्वती और दाएं भाग से शिव के रूप को हस्तकों से निरूपित किया। आंखों व मुख के भावों की यह प्रस्तुति अनूठी थी।