भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश है जहां मलेरिया से सबसे ज्यादा मौतें होती हैं। दुनियाभर में मलेरिया से होने वाली कुल मौतों में से सात फीसद मामले भारत के होते हैं। सबसे ज्यादा 30 फीसद मौतों के साथ नाइजीरिया पहले पायदान पर है। मलेरिया पर 2017 में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि भारत दुनिया के उन 15 देशों में शामिल है जहां मलेरिया के सबसे अधिक मामले आते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी खराब हालत के बावजूद जनस्वास्थ्य पर राष्ट्रीय कार्यक्रमों को लेकर जरूरी योजना व गंभीरता नहीं दिखाई देती। जीटीबी अस्पताल के मेडिसिन विभाग के डॉ आशीष गोयल का कहना है कि सबसे ज्यादा चुनौती यह है कि मलेरिया ने दवा प्रतिरोधकता विकसित कर ली है। यह दोहरे स्तर का है। एक तो कीटनाशकों से दूसरे इलाज में प्रयोग होने वाली दवाओं से भी। पूर्वोत्तर के राज्यों में सबसे अधिक प्रतिरोधी मलेरिया हो रहा है। इसकी बड़ी वजह है निगरानी और साफ-सफाई की कमी। यानी सरकार व समाज दोनों स्तर पर लापरवाही बढ़ी है। पहले कुछ सालों तक गली-मोहल्लों में नियमित दवाओं का छिड़काव होता था, लेकिन अब तो अस्पताल के वार्डों में भी मच्छर के जरिए डेंगू और मलेरिया दूसरे मरीजों में फैल रहा है। निगरानी और नियंत्रण के उपाय नदारद हैं और फोकस केवल इलाज पर है।
जनस्वास्थ्य पर काम करने वाले डॉ एके अरुण का कहना है कि मलेरिया नियंत्रण की मूल दिशा ही संदिग्ध रही है। इससे बचाव के बजाए मच्छर मारो अभियान शुरू हुआ जोकि सफल नहीं हुआ क्योंकि देश का 50 फीसद क्षेत्र वेटलैंड यानी नमी वाला हिस्सा है, जो मच्छरों के अनुकूल है। नतीजा यह है कि आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, बंगाल, झारखंड व छत्तीसगढ़ सहित पूरा पूर्वोत्तर मलेरिया की चपेट में है। पहले सरकार मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम चला रही थी। वह फेल हो गया तो मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया, लेकिन 2013 में वह भी बंद हो गया। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट आने के बाद अलग से मलेरिया नियंत्रण का खाका तो बनाया गया है लेकिन वह भी सिर्फ कागजी है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, मलेरिया नियंत्रण के लिए रणनीतिक योजना बनी है जिसके तहत देश को चार श्रेणियों में बांटा गया है। जीरो श्रेणी में वे जिले हैं जो पूरी तरह इस बीमारी से मुक्त हैं। जबकि पहली और दूसरी श्रेणी में आने वाले जिलों को 2022 तक मलेरिया मुक्त बनाना है। पूरे देश को 2030 तक मलेरिया मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है। डॉ अरुण के मुताबिक, यह तब तक संभव नहीं है, जब तक कि जनस्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारी निवेश और राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई जाती। श्रीलंका और मालदीव जैसे देश मलेरिया पर इसलिए काबू कर पाए क्योंकि उनका पूरा जोर जनस्वास्थ्य पर था। देश में भी ऐसे अभियान चलाने की जरूरत है। दिल्ली सरकार ने 25 करोड़ रुपए मलेरिया और डेंगू नियंत्रण के लिए नगर निगम को दिए थे। डॉ अरुण का यह भी कहना है मालदीव में जीरो बजट यानी अतिरिक्त धन खर्च किए बिना ही मलेरिया नियंत्रण कर लिया गया था क्योंकि वहां जनस्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हैं। यहां तो पैसा बैठकों और वेतनों में ही चला जाता है।
दुनियाभर में 2016 में 21.60 करोड़ मामले दर्ज
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 2016 में दुनियाभर में मलेरिया के 21.60 करोड़ मामले दर्ज हुए और 4.45 लाख मौतें हुर्इं। जबकि 2015 में 21.10 करोड़ मामले थे और 4.46 लाख मौतें हुर्इं थी। भारत सहित चार देशों में ही 58 फीसद मौतें हुई हैं। एक अनुमान के मुताबिक, हर दो मिनट पर एक बच्चा मलेरिया के कारण दम तोड़ देता है।
