दिल्ली में कांग्रेस को बचाना शीला दीक्षित के न रहने से ज्यादा कठिन हो गया है। कांग्रेस जितनी पुरानी पार्टी है, पार्टी की गुटबाजी उतनी ही पुरानी है। गुटों में बैठी कांग्रेस को दिल्ली में वजूद को बचाने की चुनौती है। लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) से चार फीसद ज्यादा वोट लाकर कांग्रेस ने वापसी के संकेत दिए। कांग्रेस 22.50 वोट लाकर दूसरे नंबर पर रही। भाजपा को 57 फीसद वोट मिले। विधानसभा के हिसाब से इस नतीजे में भाजपा 70 में से 65 सीटों पर और कांग्रेस पांच विधानसभा सीटों पर पहले नंबर पर रही। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत सरकार के सात में से पांच मंत्रियों के इलाके में ‘आप’ तीसरे नंबर पर रही। पिछले लोकसभा चुनाव में भी ‘आप’ को कोई सीट नहीं मिली थी लेकिन तब वह दूसरे नंबर पर रही और ‘आप’ और भाजपा के वोटों का अंतर 13 फीसद था, इस बार अंतर करीब 39 फीसद रहा।

2015 के विधानसभा चुनाव के बाद ‘आप’ का राजनीतिक ग्राफ लगातार गिर रहा है। शीला दीक्षित के 15 साल मुख्यमंत्री रहने के दौरान दिल्ली के विकास कार्य ही कांग्रेस को सत्ता में वापस ला सकते हैं। यह केवल लोकसभा चुनाव के नतीजों से ही नहीं दिखा बल्कि ‘आप’ सरकार की बेचैनी से भी दिख रहा है। जिन कामों के लिए शीला दीक्षित दिल्ली के इतिहास में अपना स्थान बना पार्इं उन्हीं कामों को ‘आप’ दुहरा रही है। दीक्षित ने कांग्रेस को दिल्ली में जीतना सिखाया और दिल्ली की बहुशासन प्रणाली में सीमित अधिकारों के बूते दिल्ली का कायाकल्प कर दिया। 15 सालों में करीब सौ फ्लाईओवर और अंडर पास बने। दिल्ली के हर इलाके में मैट्रो पहुंची, आधुनिक लो फ्लोर बसें दिल्ली में चलने लगीं। दूसरे राज्यों में अपने पैसे से बिजली घर बना कर दिल्ली को बिजली के मामले में आत्मनिर्भर बनाया। पानी की उपलब्धता बढ़ाई। जिस सिग्नेचर ब्रिज को दिल्ली की मौजूदा सरकार अपनी उपलब्धि बनाकर प्रचारित किया, उसके लिए कई अधिकारियों को सेवा विस्तार दिलाया और अपनी पार्टी के ही अनेक नेताओं की नाराजगी झेलकर उसे पूरा करवाया।

इस साल दस जनवरी को शीला दीक्षित को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। उनके साथ तीन कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए। कहा यही गया कि 80 पार की दीक्षित का चेहरी सामने रहेगा लेकिन काम तीनों कार्यकारी अध्यक्ष करेंगे। पार्टी के उनके विरोधियों ने कहा कि वे तो ‘आप’ से समझौता करवाने के लिए अध्यक्ष बनीं। वास्तविकता इसके उलट साबित हुई। दीक्षित ने कहा कि जब पार्टी के अधिकांश नेता अपने बूते चुनाव लड़ना चाहते हैं तो हम किसी दल से समझौता क्यों करें। कायदे से उन्हें लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहिए था लेकिन राजनीतिक गुटबाजी के चलते उन्हें चुनाव लड़वाया गया। कांग्रेस तीसरे से दूसरे नंबर पर आई। अगर वे चुनाव लड़ने के बजाए केवल प्रचार करतीं तो नतीजे अलग होते। इन नतीजों के सहारे भी कांग्रेस विधानसभा चुनाव में बेहतर नतीजे ला सकती थी। ‘आप’ आम लोगों के सत्ता में भागीदारी के दावे करती रही है लेकिन सही मायने में आरडब्लूए को सक्रिय करके भागीदारी अभियान शीला दीक्षित ने चलाया। 1998 में दिल्ली में वन क्षेत्र आठ फीसद थे, उसे उन्होंने 20 फीसद तक पहुंचाया। स्वच्छ दिल्ली, हरी दिल्ली (ग्रीन दिल्ली, क्लीन दिल्ली) अभियान तभी का चलाया हुआ है। दिल्ली की सूरत बदलने के लिए शीला दीक्षित ने असंख्य काम किए। मेरी दिल्ली मैं ही सवारूं, उनका नारा खूब लोकप्रिय हुआ था। जाहिर है आज के कांग्रेस के कई नेता उनके मंत्रिमंडल के सदस्य रहे और उनका योगदान भी दिल्ली को संवारने में रहा है।