नोटबंदी के 45 दिन हो चुके हैं लेकिन अभी भी लोगों को बैंक से पैसे निकालने में मशक्कत करनी पड़ रही है। हद तो तब हो गई जब बैंक के अधिकारियों ने संवेदनहीनता दिखाते हुए एक लकवाग्रस्त बुजुर्ग को खटिया पर लदवाकर बैंक बुलवा लिया और तभी इलाज के लिए उन्हें पैसे दिए। ये वाकया है, मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले का। सिविल लाइन्स थाने के दारे गांव निवासी 65 वर्षीय गजराज सिंह को पारालइसिस अटैक हुआ है। वो चल-फिर नहीं सकते। यहां तक कि वो अपने दैनिक काम भी नहीं निपटा सकते। इलाज के लिए उन्हें पैसों की सख्त जरूरत है। जब पैसे निकालने उनके बेटे राजेश प्रताप सिंह बैंक पहुंचे तो बैंक अधिकारियों ने मना कर दिया।

मध्यांचल ग्रामीण बैंक, छतरपुर के अधिकारियों ने कहा कि खाता धारक को बैंक आना ही पड़ेगा। जब राजेश ने अपने पिता की हालत के बारे में उन्हें बताया और किसी कर्मचारी को घर पर चलकर हस्ताक्षर सामने कराने का अनुरोध किया तो बैंक वालों ने उसे भी ठुकरा दिया और खाता धारक को बैंक में ही लाने की बात पर अड़े रहे।

आरजू-मिन्नत से हारकर आखिरकार राजेश ने अपने बीमार पिता को खटिया पर लादकर एक मालवाहक वाहन के जरिए बैंक तक पहुंच गए। तब बैंक कर्मचारियों ने बैंक से बाहर आकर सड़क पर ही उनसे हस्ताक्षर लेने की औपचारिकता पूरी की। इसके बाद गजराज सिंह के अकाउंट से 34 हजार रुपये उनके बेटे के अकाउंट में ट्रांसफर किया जा सका।

इस घटना से दुखी गजराज सिंह के छोटे बेटे विक्रम सिंह बुंदेला ने कहा कि नोटबंदी की वजह से आम जनता पिस रही है। हमें हमारे जमा किए हुए पैसे भी नहीं दिए जा रहे हैं। बुंदेला ने कहा कि सारे नियम-कानून छोटे और गरीब लोगों पर लागू होते हैं जबकि बड़े और अमीर लोग नियमों को मजरअंदाज कर सारे काम आसानी से करा लेते हैं। उन्होंने कहा कि जो परेशानी हमें उठानी पड़ी है, उसे जिंदगी भर नहीं भुला सकते।(छतरपुर से कीर्ति राजेश चौरसिया की रिपोर्ट)