भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली के विद्यार्थी और शिक्षक लगातार आम लोगों की समस्याओं को दूर करने की कोशिश करते रहते हैं। इसके लिए वे तरह-तरह के नवाचार करते हैं। इस क्रम में मंगलवार को कुछ नवाचारों का प्रदर्शन किया गया जो दिव्यांगों की मदद से लेकर पर्यावरण की रक्षा में सहायक हैं।

नई बैसाखियां मरीजों को देंगी आराम
आइआइटी दिल्ली के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर जेपी खठैत के नेतृत्व में दो विद्यार्थियों अरविंद और श्रीनिवास ने आम बैसाखी में कई बदलाव किए हैं जिससे नई बैसाखी (फ्लेक्स-क्रच) को बहुत आरामदेह और हर तरह की सतह पर चलने लायक बना दिया है। प्रोफेसर खठैत ने बताया कि आम बैसाखियों में नीचे की ओर रबड़ लगी होती है जो घिसकर खराब हो जाती है। आम बैसाखियों से चलने के लिए मरीज को अधिक ऊर्जा लगानी पड़ती है और लंबे समय तक उसके उपयोग से कई बार हाथों की नसें भी बंद हो जाती हैं। प्रोफेसर खठैत के मुताबिक उनकी विकसित बैसाखियों में नीचे की ओर से लोहे की पत्तियों से एक डिजाइन बनाया गया है। इससे यह एक तो सभी तरह की सतहों पर चलने लायक बन गई है, दूसरा इनसे मरीज के कंधों पर दबाव नहीं पड़ता है। इससे चलने में आम बैसासिखों के मुकाबले 40 फीसद ऊर्जा ही लगती है। प्रोफेसर खठैत ने बताया कि प्रोजेक्ट में एम्स भी शामिल है। ये बैसाखियां 15 अगस्त 2018 से आम लोगों के लिए उपलब्ध होंगी।

धान की पराली से बनेंगे बर्तन
आइआइटी दिल्ली के सेंटर फोर बायोमेडिकल इंजीनियरिंग ने धान की पराली से बर्तन (कप, कटोरी, प्लेट आदि) बनाने में सफलता प्राप्त की है। इस प्रोजेक्ट से जुड़ी प्रोफेसर नीतू सिंह ने बताया कि अभी तक जिन कागजों के बर्तनों का हम इस्तेमाल करते हैं, उनको बनाने से पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ रहा है। इस समस्या का हल हमने धान की पराली से पल्प बनाकर किया। प्रोफेसर सिंह ने बताया कि हम पराली को रासायनिक प्रक्रिया से गुजारते हैं जिससे पल्प मिलता है। दिल्ली और उसके आसपास हर साल सर्दी में जलाए जाने वाली धान की पराली से होने वाले प्रदूषण की समस्या से भी छुटकारा मिलेगा। इसके अलावा किसानों को भी वित्तीय रूप से फायदा होगा क्योंकि हमारे हिसाब से धान की पराली की कीमत 45 रुपए किलोग्राम होगी।

लैड रहित बैटरी में जमा होगी अक्षय ऊर्जा
रसायन अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर अनिल वर्मा की टीम ने अक्षय ऊर्जा को एकत्रित करने के लिए लैड रहित बैटरी बनाने में सफलता प्राप्त की है। प्रोफेसर वर्मा ने बताया कि अभी हम सौर, पवन और पानी से बनी बिजली को एकत्रित करने के लिए लैड एसिड से बनने वाली बैटरी का इस्तेमाल करते हैं। इन बैटरियों का जीवन कम होता है। साथ ही इनका निर्माण और उनका निस्तारण एक बड़ी समस्या है। दोनों ही स्थिति में जल, वायु और भूमि प्रदूषण का खतरा बना रहता है। प्रोफेसर ने बताया कि इस समस्या को दूर करने के लिए हमने फ्लो बैटरी बनाई है। इस बैटरी में वेनेडियम रेडॉक्स में ऊर्जा को संरक्षित रखा जाता है। इसके बहने से इसमें संरक्षित ऊर्जा बिजली के रूप में प्राप्त की जाती है। प्रोफेसर के मुताबिक यह बैटरी 20 साल तक उपयोग में लाई जा सकती है और सबसे बड़ी बात की इससे पर्यावरण प्रदूषण को कोई खतरा नहीं है। टीम ने इस बैटरी के भारत में पेटेंट के लिए आवेदन किया है। प्रोफेसर वर्मा की टीम में डॉ राजीव और मानशू भी शामिल हैं।