उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भारी प्रदूषण की खबरों के मद्देनजर जिला प्रशासन ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से तीन दिन के भीतर प्रदूषण संबंधी आंकडे और रिपोर्ट उपलब्ध कराने का आग्रह किया है। जिलाधिकारी राजशेखर ने प्रदूषण स्तर बढ़ने के कारणों और निरोधात्मक उपायों पर जिला प्रशासन की एक बैठक की। इसके बाद शनिवार को यहां कहा कि जिन आंकड़ों के आधार पर इस मुद्दे को (मीडिया में) जोरशोर से उठाया गया है, उस पर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा भारतीय विषाक्त्ता शोध संस्थान (आईआईटीआर) ने सवाल उठाया है। क्योंकि सीपीसीबी के आंकड़ों के हवाले से जो तस्वीर खींची गयी है वह सच्चाई के अनुरूप नहीं लगती।
राजशेखर ने बताया कि जिला प्रशासन ने सीपीसीबी के लखनऊ कार्यालय से तीन दिन के भीतर वे आंकडेÞ और रिपोर्ट उपलब्ध कराने का आग्रह किया है, जिनके आधार पर खबरें छपी हंै। यह इसलिए भी जरूरी है कि लोगों के सामने सही तस्वीर पेश की जा सके और बचाव तथा सुधार की दिशा में जरूरी कदम उठाए जा सकें। उन्होंने कहा कि जहां तक उनके विश्लेषण और मानकों का सवाल है, हवा में घुले धूल कणों की संख्या(पार्टीक्यूलेट मैटर) लगभग सामान्य है। हालांकि यह आम स्तर की तुलना में अधिक है।
शेखर के अनुसार, बैठक में मौजूद आईआईटीआर के अधिकारियों ने बताया कि अलीगंज इलाके के आंकडेÞ बताते हैं कि वहां प्रदूषण स्तर मध्यम स्तर का है। जहां तक जहरीली गैसों के कारण हवा की गुणवत्ता में गिरावट का सवाल है, यह स्तर संतोषजनक के बीच बना हुआ है। जिलाधिकारी राजशेखर ने बताया कि राजधानी लखनऊ में हवा में प्रदूषण का मुख्य कारण अब तक वाहन ही हैं। उन्होंने कहा कि राज्य परिवहन कार्यालय (आरटीओ) की रिपोर्ट के अनुसार राजधानी में लगभग 20 लाख वाहन पंजीकृत हैं। इनकी नियमित जांच, प्रमाणीकरण और होने वाले प्रदूषण नियंत्रण के लिए 130 इकाइयां काम कर रही हैं।
जिलाधिकारी ने बताया कि आरटीओ को स्पष्ट निर्देश है कि सभी वाहनों का हर छह महीने पर परीक्षण हो ताकि उनसे होने वाले प्रदूषण स्तर को नियंत्रण में रखा जा सके। उन्होंने बताया कि राजधानी की हवा में प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा कारण निर्माण कार्यो से होने वाली धूल मिट्टी है, जिसके लिए एलडीए तथा नगर निगम की तरफ से समुचित उपाय करने को कहा गया है।
बैठक में सीपीसीबी का कोई अधिकारी शामिल नहीं हुआ। यहां तक कि जिला प्रशासन और मीडिया से आये फोन का जवाब भी बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी प्रदीप मिश्रा की ओर से नहीं मिला। जिलाधिकारी राजशेखर ने बताया कि हमने सीपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी से उस रिपोर्ट का ब्यौरा मांगा है, जिसके आधार पर लखनऊ को सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है। पूछे जाने पर प्रमुख सचिव पर्यावरण संजीव सरन ने कहा कि प्रदेश सरकार वाहन और निर्माण कार्यो के कारण होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने की दिशा में कदम उठा रही है।