Azam Khan News: उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान जेल से बाहर आने के बाद लगातार मीडिया से बातचीत कर रहे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने राज्यसभा के सांसद कपिल सिब्बल से भी बातचीत की है। सपा नेता ने कहा, “मैंने सदन में जो पहली तकरीर की थी, उसमें यही कहा था कि अगर कोई नारा-ए-तकबीर अल्लाह हू अकबर इसलिए कहे कि पड़ोस में सोते हुए बच्चे उठ जाएं और दहशत फैल जाए तो मैं कहूंगा कि यह इस्लाम का नारा नहीं है। लेकिन अगर कोई हर-हर महादेव का नारा भी लगाएगा दहशत फैलाने के लिए तो मैं यही कहूंगा कि यह धर्म का नारा नहीं है।”
सपा नेता आजम खान ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल को दिए इंटरव्यू में कहा, “इसी सोच को लेकर हमनें समाजवादी पार्टी बनाई थी।” आजम खान ने अपने ऊपर हुई एफआईआर को लेकर कहा, “सारे मुकदमे फर्जी हैं और एक भी मुकदमा सही नहीं है। इन सारे मुकदमों के बावजूद कमीशनखोरी का, रिश्वतखोरी का और बेइमानी का एक भी दाग इस दामन पर नहीं हैं। हां मैंने मुर्गी जरूर चोरी कराई, वो भी खुद नहीं की। खुद करता तो कम से कम मुर्गी तो मिल जाती। वो भी मैंने चोरी कराई।”
विपक्ष के लोग भी मेरी बातें ध्यान से सुनते थे- आजम खान
आजम खान ने आगे कहा, “21 साल की सजा और 36 लाख रुपये जुर्माना, वो भी सिर्फ एक ही मुकदमें में, मुझे तो लगता है कि कुदरत से कई लाख साल की उम्र मांगकर लानी पड़ेगी। हमारे साथ तो बहुत सारे मुख्यमंत्री रहे, मैं इतने लंबे अरसे तक विधानसभा में रहा था। मैं काफी लंबे समय तक विधायक रहा हूं। सदन के अंदर बड़ी सख्त बयानी होती थी, मेरा तो आलम यह था कि जब मैं बोलता था तो सुई की आवाज भी सुनाई देती थी। विपक्ष के लोग भी मेरी बातें ध्यान से सुनते थे। बाहर आकर मुझसे मुख्यमंत्री कहते थे कि भाई नाराज तो नहीं हो।”
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पहले एक-दूसरे को बर्बाद नहीं किया जाता था- सपा नेता
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता ने कहा, “1980 में मुरादाबाद में दंगा हुआ था। उस वक्त विश्वनाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री थे। मैं विधानसभा में जब अपनी बात रखकर बैठा तो विश्वनाथ प्रताप सिंह उठे और उन्होंने कहा कि आपने जो कुछ कहा है वो बिल्कुल सही है। उन्होंने कहा कि मैं मुजरिम हूं और मेरी सजा तय कीजिए। मैं एकदम खड़ा हुआ और मैंने कहा कि आपकी शराफत, आपकी जमूरियत की जीत है। एक मुख्यमंत्री अपने जुर्म का इकरार कर रहे हैं और अपनी सजा पूछना चाहते हैं। सिर्फ आपकी सजा ये है कि आप अपने इस्तीफे का ऐलान कर दीजिए। पूरा सदन खड़ा हो गया और मैं बाहर आ गया। लेकिन बाहर निकलते ही हाथ मिलाया। बल्कि हम तो अपनी जेबों में पर्चे रखते थे, किसी के ट्रांसफर का, किसी की बीमारी का। हाउस में लड़ाई और बाहर जैसे ही चीफ मिनिस्टर निकले तो हमने पर्ची पकड़ाई और उसी वक्त काम हो जाता था। लड़ाई का तो हमें फायदा होता था क्योंकि उस समय नफरतें नहीं थी। एक-दूसरे को जलील और बर्बाद नहीं किया जाता था।”
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