शिक्षा के क्षेत्र में देश के अग्रणी राज्य केरल की गिनती किसी जमाने में देश के सबसे गरीब और कमजोर राज्य के तौर पर होती थी। 1957 में लाइफ मैगजीन ने केरल को भारत का सबसे गरीब राज्य बताया था। 1964 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने केरल की भुखमरी की बात की थी। गरीबी से जूझ रहे केरल की स्थिति को देखते हुए इंदिरा गांधी ने यहां तक कह दिया था कि वह चावल तब तक नहीं खाएंगी जब तक केरल के लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त चावल नहीं हो जाता है। लेकिन अगले कुछ दशकों में यहां जो बदलाव हुए, उसके बाद यह भारत का सबसे साक्षर राज्य बन गया।
1956 में केरल का निर्माण त्रावणकोर, मालाबार और कोचीन रियासतों को मिलाकर किया गया था, जहां मलयाम भाषा बोली जाती थी। 1957 में यहां पहली सरकार का गठन हुआ। कम्युनिस्ट सरकार बनी तो राज्य की गरीबी को देखते हुए उन्होंने नारा दिया था। We Are Not Going to Do Any Wonderful यानी कि हम कुछ अद्भुत नहीं करने जा रहे हैं। इसी सरकार में ही एजुकेशन बिल 1957 को पास किया गया था, इस बिल के तहत कई प्राइवेट स्कूलों के टीचरों की सैलेरी सरकार देने लगी और इन स्कूलों को सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों का दर्जा दिया जाने लगा।
साल 1991 में केरल, देश का सबसे साक्षर राज्य बन गया। 2006-07 के एजुकेशन डेवलपमेंट इंडेक्स (EDI)में केरल शीर्ष पर रहा था। साक्षरता में आए इस उछाल का फायदा उन्हें कई रूपों में दिखने लगा जिसके बाद वहां 2014 में Athulyam literacy programme चलाया गया। जिसका मकसद राज्य के उस वर्ग तक पहुंचना जो अभी भी शिक्षा नहीं ले रहा है।
केरल ने इस बात का आंकलन कर लिया था कि गरीबी से बाहर निकलने के लिए शिक्षा एक बड़ी भूमिका अदा कर सकती है लेकिन इसके लिए लोगों का स्वस्थ रहना जरूरी है। लिहाजा वह अपने बजट का बड़ा हिस्सा इसमें खर्च करने लगे। 1957 के बाद आई सरकारों ने भी इस क्रम तो जारी रखा और शुरुआती दशकों में ही इसका अंतर दिखाई देने लगा।
केरल की साक्षर तरक्की में सिर्फ राज्य औऱ केंद्र सरकारों का योगदान नहीं था बल्कि आजादी से पहले त्रावणकोर और कोचीन के जमाने में ही इसकी नींव रख दी गई थी, उस जमाने में ज्यादा हुए आंदोलनों ने केरल को सक्षम बनाया और बड़े पैमाने पर स्कूल और अस्पताल खोल दिए गए थे।
अब जब कई राज्य साक्षरता के लिए ज्यादा फंड खर्च कर रहे हैं तो केरल एक कदम आगे चल रहा है। इस वक्त वहां पढ़ाई का तरीका बदला जा रहा है। सरकार 16 हजार सेकेंडरी और प्राइमरी स्कूलों में हाइटेक क्लासरुम और लैब बना रही है। इसके लिए 595 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। क्लासरुप पूरी तरह सेस डिजिटल बनाए जा रहे हैं।