Bengaluru Flooding: कर्नाटक में पिछले कुछ दिनों से भारी बारिश हो रही है, कई जिलों के लिए तो रेड अलर्ट भी जारी है। बेंगलुरु को मौसम विभाग ने ऑरेंज अलर्ट पर रखा है, लेकिन वहां की हालत देख लगता है कि स्थिति ज्यादा खराब है। बारिश के बाद बेंगलुरु में जगह-जगह पानी भर जाना एक आम बात हो चुकी है, यहां पर लोग भी अब इस प्रकार की स्थिति के आदी हो चुके हैं। सरकारें बदलती हैं, लेकिन देश की ‘सिलिकॉन वैली’ ऐसे ही बाढ़ से जूझती दिख जाती है।
बेंगलुरु में कितनी बारिश हुई?
अब इस बार बेंगलुरु में 18 मई को भारी बारिश हुई थी, 12 घंटे के अंदर में 130 एमएम बरसात दर्ज की गई। उस वजह से तीन लोगों की मौत हुई, 500 के करीब घर बाढ़ से प्रभावित हुए और 20 झीलें ओवरफ्लो कर गईं। अब बेंगलुरु में जो ऐसे हालात बने हैं, इसके अपने बड़े कारण हैं। विकास के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतें जरूर खड़ी की गई हैं, लेकिन पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा गया।
बेंगलुरु में हर बार बाढ़ जैसी हालत क्यों?
अब बेंगलुरु की अगर टोपोग्राफी को समझने की कोशिश करेंगे तो समझ आता है कि बेंगलुरु समुद्रतल से लगभग 900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां कोई ऐसी नदी भी नहीं है जहां अतिरिक्त पानी की निकासी हो सके। अब ऐसा नहीं है कि हमेशा से ही बेंगलुरु ऐसा रहा था, बात अगर 1800 की करें तो तब कर्नाटक का यह शहर सिर्फ 740 स्क्वायर किलोमीटर में फैला हुआ था, तब वहां पर 1452 वॉटर बॉडीज थीं। पानी की क्षमता भी 35 TMC तक रहती थी। उस समय तो रेन वॉटर हारवेस्टिंग के भी अच्छे इंतजाम थे।
कुनार नदी पर बांध बनाने की तैयारी में अफगानिस्तान
बेंगलुरु में कम हो गईं झीलें
लेकिन अब जैसे-जैसे समय बीतता गया, बेंगलुरु में झीलें कम हो गईं, पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में इनक्रोचमेंट हुईं और उसी वजह से पानी की निकासी मुश्किल होती चली गई। इस बारे में जल संकट के जानकार विश्वनाथ एस कहते हैं कि बेंगलुरु में एसटी बेड लेयआउट और मनयता टेक पार्क कुछ ऐसे इलाके हैं जो lake beds पर बनाए गए हैं, यहां अर्बन फ्लडिंग की समस्या तो हमेशा से ही रही है। होसुर रोड पर तो पहले स्मार्ट वॉटर डिसचार्ज सिस्टम होता था, लेकिन शहरीकरण की वजह से वहां भी अब जलभराव की समस्या होने लगी है।
बेंगलुरु का पुराना ड्रेनेज सिस्टम
इसके ऊपर जानकार मानते हैं कि बेंगलुरु का ड्रेनेज सिस्टम ना सिर्फ अब पुराना हो चुका है बल्कि ये वर्तमान चुनौतियों के लिहाज से प्रभावशाली भी नहीं रह गया है। ऐसे में इसका दुरुस्त होना भी काफी जरूरी है। इस बारे में विश्वनाथ एस कहते हैं कि इस समय कर्नाटक सरकार ने वर्ल्ड बैंक से जो 5000 करोड़ का कर्ज मांगा है, उसका इस्तेमाल मजबूत ड्रेन इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में किया जाना चाहिए। इस समय BBMP को एक मास्टर प्लान बनाने की जरूरत है। वर्तमान समस्याओं के लिए अब पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर नहीं रहा जा सकता।
वैसे कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार भी इस समस्या को समझते हैं, उनके मुताबिक सिविक एजेंसी ने 210 फ्लड प्रोन जोन की पहचान की थी, वहां भी 70 फीसदी इलाकों में स्थिति को सामान्य कर दिया गया है। बाढ़ रोकने के लिए 24 जगहों पर अभी काम भी जारी है, बाकी बचे 24 इलाकों में जल्द शुरू कर दिया जाएगा।
ये भी पढ़ें- जब बाथरूम से लाना पड़े घर के लिए पानी, दिल्ली में भी छिड़ी है एक जंग