Three Language Policy: महाराष्ट्र में हिंदू थोपे जाने जैसे आरोपों के बीच फडणवीस सरकार ने बड़ा फैसला किया है। उसने अपना थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी का आदेश ही वापस ले लिया है और एक कमेटी बनाने का ऐलान किया है। असल में पिछले कई दिनों से महाराष्ट्र में महायुति सरकार पर दबाव बनाया जा रहा था, ठाकरे ब्रदर्स तक हिंदू थोपे जाने को लेकर निशाना साध रहे थे। इसे लेकर पांच जुलाई को एक बड़ा विरोध प्रदर्शन भी होने वाला था। अब उस बीच यह फैसला हुआ है।

सीएम फडणवीस ने क्या ऐलान किया?

सीएम फडणवीस ने इस बारे में खुद जानकारी दी है। वे कहते हैं कि यह फैसला राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में हुआ है। अभी के लिए थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी और उसके क्रियान्वयन के तरीके को लेकर डॉक्टर नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाने का फैसला हुआ है। इस समिति की जो भी रिपोर्ट आएगी, उसके आधार पर ही नई नीति को लागू किया जाएगा।

हिंदी को लेकर क्या बोले फडणवीस?

फडणवीस ने आगे कहा कि जब तक हमारे पास नई समिति की सिफारिशें नहीं आ जातीं, हम थ्री लैंग्वेज पॉलिसी वाले दोनों ही GR को रद्द कर रहे हैं। मैं साफ कर दूं कि हमारे लिए मराठी भाषा ही केंद्र बिंदू है। वैसे नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में समिति बनाने का जो फैसला हुआ है, इसे लेकर भी सीएम के अपने तर्क हैं। उनके मुताबिक नरेंद्र जाधव एक कुलपति रह चुके हैं, वे योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी सेवाए दे चुके हैं, हर कोई उन्हें एक शिक्षाविद के रूप में जानता है। वैसे इस समिति में कई और लोगों को शामिल किया जाएगा जिनके नाम आने वाले दिनों में साफ होंगे।

RSS का ‘3 Language’ फॉर्मूला

सरकार का पुराना आदेश क्या था?

अब जानकारी के लिए बता दें कि इस साल 16 अपैल और फिर 17 जून को सरकारी निर्देश जारी किया गया था। उस आदेश में कहा गया था कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत महाराष्ट्र में भी पहली कक्षा से छात्रों को थ्री लैंग्वेज फॉर्मूले के तहत हिंदी भी पढ़ाई जाएगी। कुल तीन भाषाएं बच्चों को पढ़ाने की बात थी- इसमें मराठी, अंग्रेजी के अलावा हिंदी को शामिल किया गया था। लेकिन अब उसी आदेश को वापस लिया गया है और एक नई समिति का गठन हुआ है।

क्या बैकफुट पर थी महायुति?

जानकार मानते हैं कि महाराष्ट्र में आने वाले समय में स्थानीय चुनाव होने हैं, ऐसे में वहां नुकसान ना हो जाए, इस वजह से भी राज्य सरकार ने इस आदेश को अभी के लिए वापस ले लिया है। महायुति नहीं चाहती कि मराठी अस्मिता का मुद्दा उन्हें बैकफुट पर धकेल दे। अभी के लिए विपक्ष भी महाराष्ट्र में सरकार के इस बदले रुख को अपने लिए जीत मान रहा है।

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