उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में सोमवार तड़के आए भूकंप के मामूली झटके के बाद एक नए अंदेशे ने राज्य के लोगों को डरा दिया है। जोशीमठ में भूस्खल की खबरों से घबराए राज्य में अब तुर्की-सीरिया जैसे खतरनाक भूकंप आने की आशंका जताई गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (National Geophysical Research Institute) के चीफ साइंटिस्ट डॉ एन पूर्णचंद्र राव ने एक चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि उत्तराखंड में भी तुर्की जैसा भयानक जानलेवा भूकंप आ सकता है।
उत्तराखंड में भूकंप की तारीख और समय नहीं बता सकते
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर में डॉ. एन पूर्णचंद्र राव के हवाले से बताया गया है कि उत्तराखंड में सतह के नीचे बहुत तनाव पैदा हो रहा है। ये भूगर्भीय तनाव एक बड़े भूकंप आने के बाद ही खत्म हो पाएगा। डॉ. राव की चेतावनी के मुताबिर भूकंप की तारीख और समय की सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है, लेकिन वहां होने वाली तबाही कई भौगोलिक कारकों पर निर्भर करेगा। ये भौगोलिक कारक विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग होते हैं। डॉ. राव ने देकर कहा, “हम सटीक समय और तारीख की भविष्यवाणी नहीं कर सकते, लेकिन उत्तराखंड में कभी भी भारी भूकंप आ सकता है।”
वेरियोमेट्रिक जीपीएस डाटा प्रोसेसिंग से मिल रहे संकेत
डॉ. राव ने कहा कि धरती के साथ क्या-क्या हो रहा है, ये निर्धारित करने के लिए वेरियोमेट्रिक जीपीएस डाटा प्रोसेसिंग विश्वसनीय तरीकों में से एक है। वेरियोमीटर विभिन्न जगहों पर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में अंतर को मापते हैं। उन्होंने कहा कि हमने उत्तराखंड के आसपास हिमालयी क्षेत्र में लगभग 80 भूकंपीय स्टेशन स्थापित किए हैं। हम इसकी रियल टाइम मॉनिटरिंग रहे हैं। हमारा डेटा दिखाता है कि इन इलाकों में भूगर्भीय तनाव काफी समय से इकट्ठा हो रहा है। हमारे पास हिमालयी क्षेत्र में जो जीपीएस नेटवर्क हैं, उनके पॉइंट हिल रहे हैं। यह धरती की सतह के नीचे होने वाले बदलावों का संकेत दे रहे हैं।
तुर्की से ज्यादा तीव्रता वाले भूकंप का खतरा
उत्तराखंड में कुछ ही महीने में चारधाम यात्रा शुरू होने वाली है। बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे तीर्थ स्थलों के रास्ते जोशीमठ में जमीन धंसने, पहाड़ दरकने और घरों में दरार के बाद इतने बड़े भूवैज्ञानिक डॉ. राव की चेतावनी से देश भर में चिंता बढ़ गई है। डॉ. राव ने कहा कि खराब गुणवत्ता वाले निर्माण सहित कई कारणों से रिक्टर स्केल पर 8 से कम तीव्रता वाले भूकंप से तुर्की में काफी हो गई। जबकि, जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैले हिमालयी क्षेत्र में 8 से अधिक तीव्रता का भूकंप आने का खतरा है।
इन फैक्टर्स पर तय होता है भूकंप से तबाही का आकलन
भूकंप से होने वाले तबाही के आकलन के बारे में डॉ. राव ने कहा कि इसका अनुमान फिलहाल मुश्किल है। उन्होंने कहा कि भूकंप से होने वाला नुकसान कई मानकों पर निर्भर करता है। इनमें इलाके में जनसंख्या घनत्व, इमारतों की बनावट, पहले से की गई तैयारी, पहाड़ों या मैदानों में निर्माण की गुणवत्ता, आपदा प्रबंधन जैसे कई मानक शामिल हैं।
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चार खतरनाक समेत कई भूकंप का सामना कर चुका है उत्तराखंड
डॉ. राव के मुताबिक पूरे हिमालयी क्षेत्र में भूकंप की आशंका हमेशा से अधिक है। हिमालयी राज्यों ने पहले 1720 के कुमाऊं भूकंप और 1803 के गढ़वाल भूकंप सहित चार बड़े भूकंप देखे हैं। हिमालय की सीमा भारत के भूकंप ज़ोन मैप के सिस्मिक ज़ोन 5 और 4 में आती है। हालांकि उत्तराखंड बीते 100 से अधिक वर्षों के लिए 8 और उससे अधिक तीव्रता के बड़े भूकंप का सामना नहीं किया है। वैसे साल 1991 और 1999 में उत्तरकाशी और चमोली जिले में हाल ही में कम तीव्रता के दो भूकंप आए थे।
तुर्की में भूकंप के नए झटके, मरने वालों की संख्या 46000 पार
तुर्की 6 फरवरी को आए खतरनाक भूकंप के झटकों से संभला भी नहीं था कि फिर सोमवार शाम को 6.4 तीव्रता का भूकंप का सामना करने पर मजबूर हो गया था। तुर्की और सीरिया में भूकंप ने 46 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। वहीं दोनों ही देशों की माली हालत को भी तोड़कर रख दिया है। जानकारों के मुताबिक दुनिया भर से मदद मिलने के बावजूद तुर्की को संभलने में काफी लंबा वक्त लग सकता है।