पंजाब के बठिंडा में मंगलवार को हुए विमान हादसे में जान गंवाने वाले हरियाणा के खेत मजदूर गोविंद कुमार का अंतिम संस्कार गुरुवार की शाम उनके पैतृक गांव (जिला चरखी दादरी) में किया गया। पूरे गांव की आंखें उस समय नम हो गईं, जब गोविंद के महज़ पांच साल के बेटे प्रशांत ने अपने पिता को मुखाग्नि दी। मासूम चेहरे पर गंभीरता और आंखों में डर और खालीपन लिए हुए वह बच्चा जैसे समय से पहले बड़ा हो गया हो।
गरीबी में पला, संघर्ष में जीया और अनहोनी में गई जान
32 वर्षीय गोविंद कुमार का जीवन एक आम खेत मजदूर की तरह कठिनाइयों से भरा रहा। जब वह किशोर थे, तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया था। चार भाई-बहनों में सबसे छोटे होने के बावजूद, उन्होंने ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई और परिवार के लिए जी-तोड़ मेहनत करने लगे।
कुछ दिन पहले ही वे अपने चचेरे भाई और दोस्तों के साथ पंजाब के बठिंडा गए थे, जहां वे एक कृषि मंडी में गेहूं की बोरियां लादने का काम कर रहे थे। दिनभर खेत में काम और रात को उसी खेत में बने एक अस्थायी टीन शेड वाले कमरे में सोना—यही उनकी ज़िंदगी का हिस्सा बन गया था। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि यह ठिकाना ही उनकी ज़िंदगी की आखिरी मंज़िल बन जाएगा।
धमाके की गूंज और एक मजदूर की बंद हो गईं सांसें
हादसे के दिन आसमान में अचानक तेज़ धमाका हुआ। काम छोड़कर जब उनके साथी घटनास्थल की ओर भागे, तो देखा कि एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। गोविंद वहां बुरी तरह घायल पड़े थे—शरीर पर जलने के निशान थे और धारदार टुकड़ों से गहरे जख्म थे। उनके साथी संदीप ने बताया, “शायद वह विमान गिरने के बाद सबसे पहले वहां पहुंचे होंगे। शायद मदद करना चाहते होंगे, पर किस्मत ने उन्हें मौका नहीं दिया। उन्होंने हमारी आंखों के सामने दम तोड़ दिया।” गोविंद को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन ज़ख्म इतने गंभीर थे कि डॉक्टर उन्हें नहीं बचा सके।
छोटे से परिवार पर टूटा दुख का पहाड़
गोविंद अपने पीछे पत्नी ममता, बेटी परी और बेटा प्रशांत को छोड़ गए। ममता बेसुध सी बैठी थीं। बेटी परी अपनी मां की गोद में सहमी हुई थी, और प्रशांत…जिसे शायद अभी तक यह भी ठीक से समझ नहीं आया होगा कि पिता की मौत का मतलब क्या होता है, उसने अपने छोटे हाथों से चिता को अग्नि दी।
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गांव वालों के अनुसार, गोविंद बहुत ही मेहनती और जिम्मेदार इंसान थे। वे अक्सर गांव लौटकर दूसरों की मदद करते और अपनी कमाई से बच्चों को पढ़ाने का सपना देखते थे। लेकिन एक हादसे ने उन सपनों को राख में बदल दिया।
घटना के दो दिन बाद भी पीड़ित परिवार को किसी तरह की सरकारी सहायता या मुआवज़े की कोई सूचना नहीं मिली है। गांव के सरपंच ने बताया कि उन्होंने प्रशासन को पत्र लिखा है और मांग की है कि गोविंद के परिवार को तत्काल सहायता दी जाए। सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की चुप्पी ने इस मामले को और संवेदनशील बना दिया है। खेत मजदूरी करने गए एक आम इंसान की जान एक ऐसे हादसे में चली गई, जिसमें उसका कोई दोष नहीं था। फिर भी न कोई अधिकारी आया, न कोई सहायता।
सवाल उठता है कि क्या गोविंद कुमार जैसे हज़ारों मजदूरों की जान की कोई कीमत नहीं है? क्या एक सरकारी बयान, एक औपचारिक जांच या मुआवज़ा उनके परिवार की टूटती सांसों को थाम सकता है? गांव वालों का कहना है कि प्रशांत और परी की परवरिश अब पूरे गांव की जिम्मेदारी है, लेकिन जो खालीपन एक पिता की मौत से पैदा हुआ है, उसे भर पाना किसी के लिए मुमकिन नहीं।