Aishwarya Mohanty
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस दिन वार्षिक डीजीपी सम्मेलन को संबोधित करने के लिए स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पहुंचे तब आसपास के गांवों में किसानों ने दूसरे दिन यानी गुरुवार को भूमि अधिग्रहण के खिलाफ अपना विरोध जारी रखा। केवड़िया कॉलोनी और गरुड़ेश्वर की दुकानें भी विरोध में बंद रहीं। पॉलीथिन बैग और कपड़े के बने काले झंडे भी कई घरों पर लगे हुए देखे गए। प्रदर्शनकारी आदिवासियों का कहना है कि वो शनिवार को सम्मेलन के आखिरी दिन तक अपना विरोध जारी रखेंगे। किसानों का कहना है कि पहले उनकी जमीनें सरदार सरोवर बांध के नाम पर अधिग्रहित की गईं। मगर अब उन्हें डर है कि उनकी बची जमीनें इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के नाम पर ले ली जाएंगी।
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से पहले पुलिस अधिकारियों को नजर आ रहे घरों की छतों से काले झंडे हटाने के निर्देश दिए गए। हालांकि बहुत से घरों के बाहर काले झंडे लगे नजर आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन के विरोध में केवड़िया कॉलोनी में अपने घर की छत पर काले झंडा लगाने वाली जस्सीबेन तादवी (52) ने अपना दर्द बयां करते हुए बताया, ‘हमारी आय का एक मात्र जरिया हमारी खेती ही है। वो भी ले गई और हम मुआवजे का इंतजार करते रह गए। मूर्ति निर्माण कार्य जब चल रहा था तब हमसे नौकरियों का वादा किया गया। अब मेरे बच्चों को सिर्फ एक सप्ताह के लिए साइट पर काम करने के लिए बुलाया गया। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे। उन्हें पहले हमारी शिकायतों पर ध्यान देना चाहिए। फिर इस तरह के इवेंट की मेजबानी करें। हमें प्रदर्शन इसलिए कर रहे हैं चूंकि हम उन्हें बताया चाहते हैं कि हम खुश नहीं हैं।’
जानना चाहिए कि अक्टूबर में स्टैचू ऑफ यूनिटी के अनावरण से एक सप्ताह पहले लोगों के प्रदर्शन के चलते राज्य सरकार ने प्रभावित गांव निवासियों को मुआवजा देने की घोषणा की थी। मुआवजे के रूप में प्रति हेक्टेयर जमीन के 7.5 लाख रुपए देने के अलावा कुछ दूसरे स्थानों पर जमीन देने को कहा गया। हालांकि ग्रामीणों ने सरकार की इस पेशकश से इनकार कर दिया और अधिग्रहित कर ली गई जमीन वापस देने की मांग की। ग्रामीणों ने यह भी दोहराया कि वह और जमीन टूरिज्म प्रोजेक्ट और स्टैचू के पास इन्फ्रास्ट्रक्चर विस्तार के लिए और जमीन नहीं देंगे। इसमें स्टेट भवन भी शामिल है।
प्रदर्शन कर रहे एक और किसान संजय तादवी ने कहा, ‘हमें कहीं और जमीन नहीं चाहिए। हम अपनी जमीन वहीं चाहते हैं जहां हम हैं। वो हमारी जमीन पर भवन और अन्य निर्माण करेंगे। 40-50 किलोमीटर दूर देने के बजाय हमें जमीन वहीं वापस क्यों नहीं दी गई। हम उस जमीन का क्या करेंगे जब हमारा परिवार यहां है। हम अपनी जमीन का एक इंच भी नहीं देंगे और अपनी जमीनों का आर्थिक पैकेज नहीं चाहते।

