गुजरात की भाजपा सरकार गौशाला के लिए खेती योग्य भूमि खरीदने की सीमा वाले कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है। इसका असर ये होगा कि गौशाला चलाने वाले ट्रस्ट जो गौशालाओं के लिए ज्यादा कृषि योग्य जमीन नहीं खरीद पाते थे, अब वे ऐसा कर पाएंगे। इसके लिए कृषि भूमि सीलिंग (एएलसी) कानून के कुछ प्रावधानों में बदलाव किया जाएगा। सोमवार से शुरू हो रहे बजट सत्र के दौरान कृषि भूमि सीलिंग (एएलसी) कानून में संशोधन के लिए बिल लाया जा सकता है। दरअसल, वर्तमान एएलसी कानून के तहत एक व्यक्ति या संस्थान गौशाला के लिए तय सीमा से ज्यादा कृषि योग्य भूमि की खरीद नहीं कर सकता है। हालांकि, इस कानून के तहत भूमि खरीदने की सीमा प्रत्येक जिलों में अलग-अलग है।
वर्ष 1974 में पेश किए गए एएलसी कानून में संशोधन के तहत, राज्य सरकार ने एक समय सीमा निर्धारित की थी कि केवल वे पब्लिक ट्रस्ट जो 1973 से पहले से रजिस्टर्ड थे, तय सीमा की तुलना में अधिक भूमि खरीद सकते हैं। प्रस्तावित विधेयक के बारे में जानकारी रखने वाले एक सूत्र के अनुसार, “प्रस्तावित विधेयक में राज्य सरकार गौशालाएं चलाने वाले वैसे पब्लिक ट्रस्ट जिनका रजिस्ट्रेशन 1973 के बाद हुआ है, के लिए कृषि योग्य जमीन खरीद की सीमा बढ़ाना चाहती है। इस बिल के सदन में पास हो जाने के बाद गौशाला चलाने वाले पब्लिक ट्रस्ट भूमि सीलिंग कानून के तहत अधिक जमीन खरीद सकेंगे।”
राज्य सरकार के एक बड़े अधिकारी के अनुसार, कच्छ सहित राज्य के कई इलाकों में काफी संख्या में पब्लिक ट्रस्ट गौ-संरक्षण पर काम कर रहे हैं और गौशालाएं चला रहे हैं। अधिकारी ने बताया, “कई पब्लिक ट्रस्टों के पास तय सीमा से अधिक कृषि योग्य भूमि है। एएलसी एक्ट के तहत तय सीमा से अधिक भूमि पर राज्य सरकार का अधिकार हो जाता है। इस वजह से गुजरात के विभिन्न इलाकों में राज्य सरकार और पब्लिक ट्रस्टों के बीच कोर्ट में मामले चल रहे हैं। एएलसी कानून में संशोधन होने पर इन मामलों का निपटारा हो जाएगा।” अधिकारी ने यह भी बताया कि संशोधित बिल के लागू होने के बाद 1973 के बाद से रजिस्टर्ड पब्लिक ट्रस्ट को अधिक जमीन खरीदने की इजाजत मिल जाएगी।
सूत्रों ने बताया कि गुजरात में धार्मिक समूह के कुछ वर्ग जो ‘जीवदया (जानवरों के प्रति दया)’ के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, ने सरकार से ट्रस्ट को जमीन खरीदने की सीम में छूट देने की मांग की है। सरकार द्वारा बिल में संशोधन के कदम को धार्मिक समूहों की मांग पूरा करने के रूप में देखा जा रहा है।