प्रीति दास
गुजरात के अहमदाबाद में करीब 100 दलित परिवारों ने नवरात्रि में अपनी पहचान को उत्सव की शक्ल देने के लिए ‘अंबेडकर गरबा’ का आयोजन किया। द इंडियन एक्सप्रेस से फोन पर बातचीत में रामपुर गांव में हुए कार्यक्रम के मुख्श् आयोजक कनु सुमेसरा मंगलभाई ने कहा, ”यह पहली बार है जब गुजरात में कुछ ऐसा हुआ है। मुझे अपने गांव में लोगों को समझाने में पांच साल लगे कि अंबेडकर की पूजा, देवी-देवताओं की पूजा से श्रेष्ठ है। मेरे समुदाय के लोग बड़े अंधविश्वासी हैं और विश्वास रखते हैं कि देवता उन्हें ऊपर उठाएंगे। मंगलभाई ने कहा कि कार्यक्रम में खास आरती हुई जिसके बोले मशहूर फिल्म ‘जय संतोषी मां’ के गाने की तरह, ‘मैं तो आरती उतारूं रे अंबेडकर साहिब की… जय जय अंबेडकर बाबा जय जय जय…” इस कार्यक्रम का आयोजन पिछले एक हफ्ते के दौरान राज्य में दलितों पर हुए हमलों के बीच हुआ। इसमें एक युवक की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई थी क्योंकि वह गरबा देखने आया था।
मंगलवार (3 अक्टूबर) शाम को गांधीनगर के एक गांव में दलित लड़के पर हमला किया गया था। आरोप था कि ऊंची जाति के लोगों ने मूंछ रखने के लिए दलित लड़के पर हमला किया। इस क्षेत्र में हिंसा की यह तीसरी घटना है। इसके बाद सानंद के दलित पुरुषों ने व्हाट्सएप पर मूछों की तस्वीर डीपी के तौर पर लगाई और उस पर ‘मि दलित’ लिखा।
मंगलभाई ने कहा कि ‘अंबेडकर गरबा’ एक ‘बेहद मुश्किल विचार था जिसे लागू करना भी उतना ही कठिन था’ क्योंकि उस गांव में बड़ी संख्या में अगड़ी जातियों के लोग रहते हैं। उन्होंने कहा, ”गांव के अन्य दलितों ने सोचा कि मैं पागल हो गया हूं। किसी ने कहा कि नवरात्रि के दौरान, देवी की पूजा करनी चाहिए और उनकी जगह किसी और की पूजा करने पर कयामत आ जाएगी, मगर मैंने बताना जारी रखा कि देवी सबके लिए एक है। लेकिन हमारे गांव में हमें नवरात्रि के दौरान ऊंची जाति के लोगों के साथ नाचने की इजाजत नहीं है।”

