ऐसा कहा जाता है कि अगर आप जी-जान लगाकर किसी चीज को पाने की कोशिश करते हैं तो वह आपको जरूर मिलती है। अगर वह इंसान देखने में असमर्थ हो, मतलब दृष्टिबाधित हो तो उसकी मेहनत के आगे सबकी मेहनत छोटी दिखाई देती है। हम बात कर रहे है गुजरात की रहने वाली प्राची सुखरानी की। प्राची की तीन साल की थी जब उसकी आंखे कमजोर होती चली गईं। 80 प्रतिशत कमजोर नेत्र से देखने में असफल प्राची का लक्ष्य था कि वह दुनिया के बेहतरीन मैंनेजमेंट संस्थानों में से एक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैंनेजमेंट (आईआईएम) में पढ़ाई करे। इसके लिए प्राची ने काफी मेहनत की और मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के लिए होने वाली कैट की परीक्षा में प्राची ने 98.55 प्रतिशत अंक प्राप्त किए।

प्राची तीन साल की उम्र में रेटिनल डिग्रेडेशन का शिकार हो गई थी जिसके कारण धीरे-धीरे उसकी आंखों की रोशनी कम होती चली गई। इस बीमारी का कोई इलाज तो नहीं है लेकिन इसकी वजह से प्राची ने अपने सपने और लक्ष्य से कोई समझौता नहीं किया। प्राची ने महाराजा सायाजिराव विश्वविद्यालय से बिजनेस एडमिनिशट्रेशन में स्नातक किया है। प्राची के पिता सुरेश सुखरानी ने बताया कि वह अपनी बेटी के इस हौंसले और कामयाबी से काफी खुश हैं। उन्होंने कहा कि कैट में इतने अच्छे अंक प्राप्त करने के बाद प्राची को आईआईएम-बेंगलुरू, अहमदाबाद और कोलकाता से एडमिशन के लिए फोन आया है। सुरेश ने बताया कि 15 साल की उम्र में प्राची को चेन्नई के एक डॉक्टर को दिखाया था। डॉक्टर ने प्राची को स्पेशन ग्लास पहनने की सलाह दी थी, जिससे कि प्राची पढ़ाई कर पाए।

अपनी कामयाबी पर बात करते हुए प्राची ने कहा कि मैं बहुत खुश हूं कि मेरी मेहनत रंग लाई। फिलहाल मेरा लक्ष्य पढ़ाई पूरे करने के बाद किसी मल्टिनेशनल कंपनी में काम करना है। कंपनी से अनुभव प्राप्त करने के बाद में खुद का स्टार्टअप खोलूंगी। इसके बाद प्राची ने कहा कि मेरा सबसे बड़ा उद्देश्य नेत्रहीन लोगों के लिए एक एनजीओ खोलना है, जिससे कि मैं उनकी किसी न किसी तरह मदद कर सकूं। प्राची की इस सफलता के बाद लोग उन्हें बधाई दे रहे हैं।