गुजरात के गांधीनगर में दलित महिलाएं भूख हड़ताल पर बैठ गई हैं। सुरेंद्रनगर जिले की 65 वर्षीय जेठीबेन राठौड़ ने सत्याग्रह छावनी में अपने बेटी की हत्या के खिलाफ सोमवार से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर जाने का ऐलान किया। उनका बेटा दिन भारतीय सेना का जवान था और वीरता के चार अवार्ड जीत चुका था। उसे कथित तौर पर कुछ अगड़ी जातियों के लोगों ने मार डाला था, जब उसने उन्हें अपने घर के नजदीक जुआ खेलने से मना किया। जेठीबेन ने राज्य सरकार को हत्या का मामला फिर से खोलने, सीबीआई से जांच कराने और 10 लाख रुपए मुआवजे की मांग की। मामले में सभी पांच आरोपियों को अदालत से इस आधार पर छोड़ दिया गया कि पुलिस द्वारा बरामद किए गए हथियार का दिनेश पर चली गोलियाें से मिलान नहीं हो पाया था। जेठीबेन के साथ सौराष्ट्र से 15 और दलित महिलाएं 10 दिन से ज्यादा वक्त से गांधीनगर में न्याय की मांग को लेकर धरने पर बैठी हैं। रविवार दोपहर, दलितों ने एक आम सभा की। जिसमें जेठीबेन ने कहा, ”मेरा बेटा फौज से छुट्टी पर लेकर घर आया था। कुछ ऊंची जाति के लोग (दरबार) हमारे घर के पास जुआ खेलकर हंगामा मचा रहे थे। मेरे बेटे ने उनको ऐसा करने से रोका। अगले दिन, वही लोग आए, मेरे बेटे पर गोलियां चलाईं और हमारे घर के बाहर जुआ खेलने से रोकने पर मार डाला। पांच लोग गिरफ्तार हुए लेकिन बाद में अदालत ने उन्हें छोड़ दिया। जिस दिन उन्हें निर्दोष करार दिया गया, उन्होंने जुलूस निकाला और पटाखे जलाए। और अब हम इन लोगों की धमकियां सह रहे हैं। वो रोज हमें परेशान करते हैं, हम बाहर निकलते हैं तो हमें घूरते रहते हैं।”
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दिनेश की हत्या मार्च 2010 में हुई थी और अदालत ने आरोपियों को सितंबर 2014 को निर्दोष करार दिया। जेठीबेन ने कहा, ”हम यहां पिछले 10 दिन से ज्यादा से धरने पर हैं, सिर्फ एक वक्त खाते हैं। मगर हम सोमवार से खाना छोड़ देंगे। अगर न्याय नहीं मिलता है तो हम यहीं मरना पसंद करेंगे।” जेठीबेन और उन जैसी 15 अन्य पीड़िताओं की मदद कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता राजू सोलंकी ने कहा, ”दिनेश को दिनदहाड़े अगड़ी जाति के लोगों ने उसके घर के बाहर जुआ खेलने से मना करने के लिए मार डाला था। और पांच लोग इसलिए बरी हो गए क्योंकि पुलिस को जो हथियार मिला, वह उस पर चली गोलियों से मैच नहीं हुआ। इसमें गलती किसकी है? क्या इस तरह हम अपने जवानों की इज्जत करते हैं?”
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गृह राज्य मंत्री प्रदीपसिंह जडेजा ने कहा, ”सरकार दलितों के मुद्दों के प्रति संवेदनशील है। उनकी (सत्याग्रह छावनी के धरने पर बैठे दलित) कई मांगें हैं, जिन्हें पूरा करने में लंबा समय चाहिए। हमने उनकी मांगें सरकार के विभिन्न विभागों को भेज दी हैं।”