अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के कुछ दिन पहले राज्यपाल जेपी राजखोवा ने केंद्र से कहा था कि राज्य में संवैधानिक मशीनरी ठप हो गई है और राजनीतिक अस्थिरता के कारण कानून व्यवस्था की स्थिति बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। राजखोवा ने राष्ट्रपति को यह भी सूचित किया था कि उनकी सार्वजनिक आलोचना और राजभवन परिसर का अक्सर घेराव व आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल के कारण उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को अपनी जान पर गंभीर खतरा होने की आशंका थी।

एक महीने बाद राजखोवा ने अपनी विशेष रिपोर्ट में कहा कि सदन के मौजूदा 58 सदस्यों में से 31 विधायकों ने कलिखो पुल को अपने नेता के रूप में समर्थन किया और सरकार बनाने का दावा किया। उन्होंने 16 फरवरी को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा-इस प्रकार विधायकों ने बहुमत से कलिखो को सदन के नेता और अगले मुख्यमंत्री के रूप में समर्थन किया है। इसके मद्देनजर राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा वापस लेने पर माननीय राष्ट्रपति विचार कर सकते हैं। जिससे लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार गठन हो सके जिसे सदन में बहुमत प्राप्त हो।

राज्यपाल ने 15 जनवरी को भेजे अपने पहले पत्र में कहा था कि अरुणाचल प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता के कारण विकास, लोक सेवाएं, राज्य के संसाधनों का प्रबंधन, कानून व्यवस्था आदि क्षेत्रों में बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। उन्होंने पत्र में कहा कि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में असंतोष के कारण सितंबर से अक्तूबर 2015 के बीच राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति बनी। उन्होंने कहा कि संवैधानिक मशीनरी ठप हो गई है।

राजखोवा ने कहा था कि 60 सदस्यीय विधानसभा में (उस समय) मुख्यमंत्री नबम टुकी नीत सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को सिर्फ 26 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। इन 26 सदस्यों में खुद टुकी और विधानसभाध्यक्ष नबम रेबिया  शामिल हैं जबकि पहले 47 विधायकों का समर्थन प्राप्त था।  21 असंतुष्ट विधायकों ने खुलेआम टुकी के खिलाफ विद्रोह किया।

केंद्रीय कैबिनेट ने 24 जनवरी को राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सिफारिश की थी और 26 जनवरी को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। केंद्रीय शासन 17 फरवरी को हटा लिया गया और उसी रात पुल ने नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।   अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने और इसे हटाने संबंधी उद्घोषणा की प्रति तथा राज्यपाल की दो रपट मंगलवार को संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखी गई।