यूपी में बलरामपुर जनपद के तुलसीपुर क्षेत्र में स्थित मुख्य चौराहे से तीन किलोमीटर उत्तर पश्चिम दिशा, परसपुर ग्राम में नवों देवियों के साथ मां की प्रतिमा के रूप में आदिशक्ति विराजमान हैं। शारदीय नवरात्रि में दूरदराज से श्रद्धालु मां के दर्शन-पूजन कर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करने के लिए आते हैं।
नवों देवी मन्दिर हजारों वर्ष पुराना है। मन्दिर के निर्माण के बारे में बताया जाता है कि इसका निर्माण कई कालखंडों में हुआ है। इसे नेपाल नरेश तथा सम्राट विक्रमादित्य ने अपने समय में बनवाया है। वर्तमान में मन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है।
मन्दिर निर्माण के पीछे अपनी अलग-अलग मान्यता है। बताया जाता है कि हजारों वर्ष पूर्व इस स्थान पर मजलिस नाथ नाम के साधु आश्रम बनाकर रहते थे। एक रात उन्हें स्वप्न आया कि यहां कुआं बनवाओ और सुबह होते ही स्वप्न की बात भूल कर अपने नित्य कार्य में लग गये। दूसरी रात्रि फिर स्वप्न में वही बात आने पर सुबह अपने सहयोगियों के साथ चर्चा कर गांव वालों की सहयोग से कुआं की खुदाई शुरू करा दिया।
कहा जाता है कि जैसे ही कुआं कुछ गहरा हुआ वहां से रक्त की धारा बहने लगी। खुदाई में और मिट्टी निकालने पर काले पत्थर में नवो देवियों की प्रतिमा मिली। प्रतिमा खंडित थी। ऐसा कहा जाता है कि प्रतिमा से खून बह रहा था। मौजूद ग्रामीणों ने आस-पास के विद्वानों से राय-मशविरा कर वहीं पर प्रतिमा स्थापित कर मन्दिर बना दिया।
आज वर्तमान में भी गहरे स्थान पर स्वयंभू प्रतिमा स्थापित है। खुदाई में निकली शिला (देवी प्रतिमा के कान के भाग ) से हल्का जल का रिसाव होता रहता है।
मन्दिर के महन्थ गोपाल नाथ योगी बताते हैं कि मई, जून माह में जल का रिसाव बढ़ जाता है। महन्थ का दावा है कि जिस वर्ष जल का रिसाव ज्यादा होता है उस वर्ष बरसात खूब होती है। अलग-अलग समय पर मन्दिर का जीर्णोद्धार तत्कालीन राजाओं के द्वारा हुआ है। मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर निर्माण वर्ष 1244 अंकित है। नवरात्रि में दूरदराज से श्रद्धालु यहां पहुंच मां आदिशक्ति के नवों रूप का दर्शन-पूजन करते हैं।