वाहनों की बढ़ती आवाजाही से गंगोत्री और उसके सहायक ग्लेशियरों में विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। जिसने पर्यावरणविदों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। एक अध्ययन के मुताबिक इस साल उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा के दौरान गंगोत्री क्षेत्र में 50 हजार से ज्यादा डीजल और पेट्रोल वाले वाहनों का आना-जाना लगा रहा। यात्रा की अवधि के दौरान इन वाहनों से निकलने वाले कार्बन ने ग्लेशियरों को नुकसान पहुंचाया।
इस मामले में देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने गहन अध्ययन और मंथन किया। संस्थान ने उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री धाम क्षेत्र में भोज वासा में एथेलोमीटर के माध्यम से उत्तराखंड के गंगोत्री ग्लेशियर में वाहनों की आवाजाही से निकलने वाले कार्बन के प्रभाव का अध्ययन किया। इसमें बताया गया कि क्षेत्र में कार्बन की मात्रा बढ़ने से पर्यावरण संतुलन बिगड़ा है। लिहाजा हर साल गंगोत्री ग्लेशियर पीछे खिसक रहा है।
2016 में एथेलोमीटर से मिले आंकड़े चौंकाने वाले रहे है। तब मई महीने में वाहनों की आवाजाही से गंगोत्री क्षेत्र में कार्बन निकलने की मात्रा 1899 नैनोग्राम प्रति घन मीटर और अगस्त महीने में 123 नैनोग्राम प्रति घन मीटर मापी गई। मई में चारों धामों में वाहनों की आवाजाही बहुत अधिक रहती है, जबकि बरसात के अगस्त महीने में वाहनों की तादाद गर्मियों के सीजन के मुकाबले कम हो जाती है।
अध्ययन के मुताबिक 2016 की रिपोर्ट के बाद अब नए आंकड़ों का अध्ययन किया जा रहा है। इसमें डेढ़ से दो साल का समय लग सकता है। इस अध्ययन के अनुसार गंगोत्री धाम के केदार बामक रक्त वर्ण, चतुरंगी ,रुद्र गेरा, वासुकी, सतोपंथ, सुरालय, सीता, नीलांबर, गंगोत्री के कई सहायक ग्लेशियर इतने अधिक बिगड़ गए हैं कि इनके नीचे की जमीन दिखाई देने लगी है। वातावरण में आ रहे बदलाव और मानव निर्मित प्रदूषण इस क्षेत्र के ग्लेशियरों के लिए बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है।
कुछ सालों में उत्तराखंड में लगातार जंगल जलने की घटनाएं तेजी के साथ हो रही हैं। वह भी ग्लेशियरों के लिए के लिए खतरा बनी हुई हैं। वाहनों की आवाजाही गंगोत्री धाम में जिस तेजी के साथ बढी है, वे आंकड़े भी चौकाने वाले हैं। डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की तादाद 2016 में गंगोत्री क्षेत्र में 26 हजार 726 थी जिनमें 2 लाख 87 हजार 727 तीर्थयात्री इस क्षेत्र में आए थे। जबकि इस साल 55 हजार 437 वाहन इस क्षेत्र में 5 लाख 28 हजार 129 तीर्थयात्री लेकर आए। आने वाले कुछ सालों में उत्तराखंड में ऑल वेदर रोड के निर्माण के बाद वाहनों और तीर्थ यात्रियों की तादाद और अधिक बढ़ेगी। तब गंगोत्री धाम क्षेत्र में कार्बन की मात्रा और अधिक बढ़ोतरी होगी।
वाडिया भूगर्भ संस्थान देहरादून के विशेषज्ञ वैज्ञानिक डॉक्टर पीएस नेगी का कहना है कि गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा लगातार बढ़ रही है और इस क्षेत्र में जिस तरह से सड़कों के विस्तारीकरण का कार्य चल रहा है, उससे वाहनों की तादाद बढ़ने के साथ-साथ ग्लेशियरों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। गंगा रक्षा के लिए समर्पित संस्था मातृ सदन हरिद्वार के संस्थापक संचालक स्वामी शिवानंद सरस्वती का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार गंगा और उसकी सहायक नदियों और जंगलों का खनन, जंगल और भू माफिया लगातार दोहन कर रहे हैं। इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। यदि ग्लेशियर और पर्यावरण शुद्ध नहीं रहेगा तो हिमालय क्षेत्र की दुर्दशा होने के साथ-साथ पूरे विश्व के पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
आजकल आॅल वेदर रोड परियोजना की पड़ताल के लिए सुप्रीम कोर्ट की हाई पावर कमेटी उत्तराखंड के दौरे पर हैं। इस कमेटी के चेयरमैन जाने-माने पर्यावरणविद् डॉ रवि चोपड़ा का कहना है कि यदि वक्त रहते हिमालय के नजदीक वाहनों की आवाजाही को काबू में नहीं लाया गया तो भविष्य में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा बढ़ने के बाद इस क्षेत्र की भयावह स्थिति हो जाएगी।
