गाजियाबाद में एक पादरी को धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। गाजियाबाद जिला कोर्ट ने मंगलवार को एक पादरी और गाजियाबाद निवासी की ज़मानत याचिका खारिज कर दी। पादरी को अनुसूचित जाति के सदस्यों को लालच देकर धर्मांतरण कराने के कथित प्रयास के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने बजरंग दल के सदस्य प्रबल गुप्ता द्वारा 15 जून को दर्ज कराई गई शिकायत के बाद 50 वर्षीय पादरी विनोद कुंज मोहन और 66 वर्षीय प्रेमचंद जाटव को गिरफ्तार किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि पादरी ने जाटव के घर पर धर्मांतरण कराया था।
अदालत ने क्या कहा?
मंगलवार की सुनवाई के दौरान गाजियाबाद के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रोहित अग्रवाल ने कहा कि पादरी को रिहा करने का कोई प्रासंगिक आधार नहीं है। आदेश में कहा गया है, “मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और अपराध की गंभीरता और आरोपी विनोद कुंज मोहन के खिलाफ जांच के दौरान इकट्ठा किए गए विभिन्न दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्यों के आधार पर आरोपी को ज़मानत पर रिहा करने का कोई प्रासंगिक आधार नहीं है।”
अदालत ने आगे कहा, “आवेदक की पहली ज़मानत याचिका गुण-दोष के आधार पर खारिज किए जाने योग्य है।” प्रेमचंद की ज़मानत याचिका को भी खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि उनकी रिहाई के लिए कोई प्रासंगिक आधार नहीं है। दोनों पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 115(2) (स्वेच्छा से चोट पहुँचाना), 351(3) (जान से मारने की धमकी), 352 (शांति भंग) के साथ-साथ उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
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आरोपी ने क्या दलील दी?
सुनवाई के दौरान विनोद कुंज मोहन के वकील ने अदालत के समक्ष दलील दी थी कि उनके मुवक्किल ने कभी किसी का धर्म परिवर्तन नहीं कराया। उन्होंने अदालत को बताया, “उनकी संलिप्तता का कोई सबूत नहीं है और शिकायतकर्ता (जो बजरंग दल का सक्रिय सदस्य है) ने उन्हें मामले में झूठा फंसाया है। एफआईआर राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए है।”
वकील ने आगे दलील दी थी कि जिस जगह कथित धर्मांतरण हुआ था, वहां से किसी भी वस्तु की कोई बरामदगी नहीं हुई है। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया, “जब किसी का धर्मांतरण होता है, तो उसमें लिखित और मौखिक शामिल होता है, लेकिन कुछ भी नहीं मिला।”