अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से सामने आ रही विविध समस्याओं का सामना करने के लिए सेवा की भागीदारी के साथ 50 मिलियन डालर की एक वैश्विक जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष (ग्लोबल क्लाईमेट चेंज रेसीलियंस फंड) की स्थापना की जाएगी। वे अहमदाबाद में स्वाश्रयी महिला संघ, सेवा के कार्यालय में देश के 18 राज्यों से आईं सेवा बहनों को संबोधित कर रही थीं। इस कोष की स्थापना का फैसला उन्होंने सेवा बहनों की ओर से जलवायु परिवर्तन की वजह से उनके सामने आ रही सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के अपनी छोटी-छोटी बचत से निकाले गए हलों से प्रभावित होकर किया।

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हिलेरी सेवा की संस्थापक और अपनी दोस्त इला भट्ट को श्रद्धांजलि देने अहमदाबाद आई थीं। रविवार को अहमदाबाद पहुंचने के बाद वे सीधे इला भट्ट के घर गईं और उनके परिवार से मिलीं। बेटे मिहिर के अनुसार उन्होंने मां के साथ अपने 40 साल के संबंधों को याद किया। उसके बाद शहर के उस विक्टोरिया गार्डन में गईं जहां पचास साल पहले भट्ट ने मात्र दस कामगार बहनों के साथ सेवा की स्थापना की थी और पचास साल पूरे होने पर उसी स्थान पर बरगद का पौधा पिछले साल अप्रैल में यह कहते हुए रोपा था कि जिस तरह बरगद का पेड़ अपनी नई-नई शाखाओं के साथ बढ़ता चला जाता है ऐसे ही सेवा भी आगे बढ़ती रहेगी और अपने सौ साल पूरे करेगी। इसके कुछ महीने बाद ही नवंबर, 2022 में 89 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया था। हिलेरी ने वहां अहमदाबाद नगर परिषद की ओर से उस स्थान पर सेवा और इला बहन की स्मृति में लगाई गई शिला पट्ट का अनावरण भी किया।

यह पहला मौका नहीं था जब हिलेरी इला भट्ट से प्रभावित हुई हों। 1995 में अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी के रूप् में वे सेवा में यह समझने के लिए आईं थीं कि गरीबों को सेवा स्वास्थ्य बीमा जैसी सेवाएं कैसे दे रही है। 

सेवा बहनों को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि इला बेन और उनके काम से उन्होंने मुख्य रूप से चार बातें सीखी हैं। पहली, गरीब कामगार बहनों को अपने व अपने काम के अहमियत का कुछ पता ही नहीं होता। इला भट्ट ने उनमें इस बारे में जागरूकता पैदा की। मैंने सेवा को देख कर सीखा कि जब इन बहनों में यह जागरूकता आती है तो वे खुद और उनका परिवार दोनों ही आगे बढ़ते हैं। 

दूसरा, हम बड़े-बड़े उद्योगों में पैसे लगाते हैं पर ऐसी बहनों में नहीं। मैंने सेवा से जाना कि जब इनमें निवेश किया जाता है तो समाज ही नहीं देश भी आगे बढ़ता है। 

तीसरा, गरीब बहनों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंनें दान या दया का सहारा नहीं लिया। आपस में दस-दस रुपए की बचत से उन्हें अपनी पूंजी खड़ी करना सिखाया। आज सेवा की ऐसी आत्मनिर्भर बहनों की संख्या करीब 25 लाख है। यह सामाजिक-आर्थिक स्तर पर की गई ऐसी क्रांति है जिसके उदाहरण दुनिया में बिरले ही मिलते हैं। यही कारण है कि इला भट्ट को दुनिया ‘साइलेंट रिवोल्यूशनरी’ के रूप में जानती है। वे अपने इरादों की पक्की और कभी हार नहीं मानने वाली सामाजिक कार्यकर्ता थीं जिन्होंने अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं को पूर्ण धैर्य के साथ हटाया। 

चौथी बात जो मैंने सीखी वह यह कि गरीब बहनों को प्रोजेक्ट किया जाना चाहिए। क्योंकि महिला और उस पर गरीब होने के कारण उनको काम आसानी से नहीं मिलता और मिलता है तो पूरी मजदूरी नहीं मिलती। ऐसी बहनों को साथ लेकर उन्होंने जो काम किए वे कहने को स्थानीय हैं पर उनका प्रभाव वैश्विक स्तर पर किए जाने वाले कार्यों से भी ज्यादा वैश्विक है।

वैश्विक जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष के बारे में उनका कहना था कि जिस तेजी से गर्मी बढ़ रही है, कामगार बहनों का उसमें काम कर पाना आसान नहीं। जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए उन उपायों पर काम किया जाए जिनसे उन खतरों का सामना आसानी से किया जा सके। सेवा की निदेशक रीमा नानावटी के साथ पिछले साल से ही मेरी इस विषय पर बातचीत हो रही थी। अब क्लिंटन ग्लोबल इनीशिएटिव समेत वे कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन इसके लिए आगे आए हैं जिन्होंने 2001 के कच्छ भूकंप के समय सेवा के साथ मिलकर काम किया था। 

दो दिन की अपनी गुजरात यात्रा के दूसरे दिन सोमवार को वे ध्रांगधरा गईं और नमक उत्पादन में लगी सेवा बहनों के काम को देखा। यहीं पर उन्होंने बताया कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष 50मिलियन डालर का होगा।