सम विषम योजना के 15 दिनों के दूसरे चरण को लेकर शंकाएं जताते हुए एक वैज्ञानिक ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) से वायु प्रदूषण के स्तरों की स्वतंत्र निगरानी करने की मांग की। याचिका को 19 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचिबद्ध किए जाने की संभावना है। पूर्व में वैज्ञानिक के तौर पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) में काम कर चुके महेंद्र पांडे ने दावा किया कि वाहनों से होने वाला प्रदूषण वायु प्रदूषण में कोई बहुत बड़ा योगदान नहीं देता।
उन्होंने आईआईटी रूड़की के एक अध्ययन का संदर्भ देते हुए कहा कि एक जनवरी से 15 जनवरी के बीच कार्यान्वित किए गए योजना के पहले चरण के दौरान शहर की वायु गुणवत्ता में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं आया था। पांडे ने कहा, ‘‘वास्तव में सीपीसीबी द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े से साफ है कि सम विषम योजना वाले दिनों में पूर्व की अवधि और बाद की अवधि से कहीं ज्यादा प्रदूषण था जिससे इस बहु चर्चित योजना को लेकर गंभीर चिंताएं उठती हैं।’’
उन्होंंने कहा, ‘‘सम विषम योजना के पहले चरण के खत्म होने के बाद दिल्ली सरकार ने उसकी सफलता को लेकर विज्ञापन प्रकाशित कर बड़े बड़े दावे किए। लेकिन आज तक प्रदूषण के स्तर को लेकर कोई भी आंकड़ा सार्वजनिक नहीं किया गया। इसलिए सम विषम योजना की सफलता के दावे बेकार हैं क्योंकि कोई भी आंकड़ा इनका समर्थन नहीं करता।’’ याचिका में सम विषम योजना के दौरान परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों में सूचीबद्ध सभी मापदंडों के स्तरों की अलग से निगरानी करने के लिए सीपीसीबी और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति को निर्देश देने की मांग की गयी है ताकि एक उचित तुलना की जा सके।