इन दोनों टिप्पणियों से साफ है कि राज्य सरकार व राजभवन के बीच एक बार फिर छत्तीस का आंकड़ा बन रहा है। इससे पहले भी समय-समय पर विभिन्न मुद्दों को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के नेताओं और राज्यपाल के बीच ठनती रही है। सरकारी कामकाज में कथित हस्तक्षेप का यह मुद्दा बीते सप्ताह संसद में भी गूंजा था। इससे पहले बीते साल उत्तर 24-परगना जिले के बसीरहाट इलाके में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान भी राज्यपाल और ममता बनर्जी में ठनी थी। ममता ने तब राज्यपाल पर धमकी देने का आरोप लगाया था।
आखिर ताजा विवाद की शुरुआत कैसे हुई? दरअसल, राज्यपाल ने मुर्शिदाबाद जिले में चल रही विभिन्न विकास परियोजनाओं की प्रगति का जायजा लेने के लिए सरकारी कर्मचारियों से साथ एक बैठक बुलाई थी। छह फरवरी को प्रस्तावित इस बैठक के लिए राजभवन की ओर से मालदा के डिवीजनल कमिश्नर को राज्यपाल के अतिरिक्त मुख्य सचिव सतीष चंद्र तिवारी ने एक पत्र भेजा था। तृणमूल कांग्रेस ने इसी बैठक को मुद्दा बना कर राज्यपाल पर सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप का आरोप लगा दिया। तृणमूल कांग्रेस सांसद दिनेश त्रिवेदी कहते हैं कि पार्टी संविधान का सम्मान करती है। लेकिन राज्यपाल सुपर चीफ मिनिस्टर नहीं हो सकते। वे राज्य के संवैधानिक मुखिया हैं, प्रशासनिक नहीं।
राज्य के संसदीय कार्य मंत्री और तृणमूल कांग्रेस महासचिव पार्थ चटर्जी आरोप लगाते हैं कि राज्यपाल ने सरकारी अधिकारियों को सीधे बैठक के लिए बुला कर अपने पद की गरिमा को तो ठेस पहुंचाई है, संविधान का भी उल्लंघन किया है। दिलचस्प यह है कि विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी ने चटर्जी को विशेष उल्लेख के जरिए पर सदन में इस मुद्दे का जिक्र करने की भी अनुमित दे दी। विपक्षी दलों ने अध्यक्ष के इस फैसले का विरोध किया है। विधानसभा में विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान कहते हैं कि राष्ट्रपति व राज्यपाल जैसे संवैधानिक प्रमुखों से जुड़े मुद्दों पर सदन में चर्चा नहीं की जा सकती।
तृणमूल कांग्रेस नेताओं की दलील है कि राज्यपाल को अलग-अलग जिलों में जाकर सरकारी अधिकारियों के साथ बैठक की बजाय मुख्यमंत्री सीधे रिपोर्ट मांग लेनी चाहिए थी। ममता विभिन्न जिलों में प्रशासनिक बैठकें करती रही हैं। राज्यपाल ने कहा है कि यह विवाद खत्म होना चाहिए और तृणमूल नेताओं को राजभवन पर कीचड़ उछालना बंद करना चाहिए। लेकिन तृणमूल नेता पार्थ चटर्जी का आरोप है कि राज्यपाल केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी यानी भाजपा के प्रवक्ता के तौर पर काम कर रहे हैं। ऐसे में फिलहाल ऊपरी तौर पर भले यह विवाद थमता नजर आ रहा हो, भीतर ही भीतर चिंगारी तो सुलग ही रही है।
