दिल्ली सरकार के फैसलों की वैधता जांच रही शुंगलू कमेटी को मिल रही जानकारी के सार्वजनिक होने से आम आदमी पार्टी के नेता मुश्किल में पड़ गए हैं, लिहाजा अब वे उपराज्यपाल पर फिर से हमला बोलने लगे हैं। इसी कड़ी में केजरीवाल सरकार की मंत्रिपरिषद ने शुंगलू कमेटी को भंग करने की सिफारिश की है। वहीं आप के दूसरे नेता उपराज्यपाल को वायसराय करार देकर उनके समिति गठित करने के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं और जांच समितियों में बाहरी लोगों को शामिल करने का आरोप लगा रहे हैं। चौतरफा संकट झेल रही केजरीवाल सरकार इस समिति से सबसे ज्यादा परेशान लग रही है। गैर-कानूनी ढंग से संसदीय सचिव बनाए गए 21 विधायकों का मामला चुनाव आयोग में अंतिम स्थिति में है, जिस पर फैसला जल्द आने वाला है। विधायकों की सदस्यता बचाने की कोशिश में शुक्रवार को राष्ट्रपति भवन पहुंचे आप नेताओं को तब और झटका लगा जब राष्ट्रपति ने एक युवा वकील विभोर आनंद की रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष बनाए गए 27 विधायकों की सदस्यता रद्द करने वाली याचिका चुनाव आयोग को भेज दी। हालांकि संसदीय सचिव विवाद के कारण अगर 21 विधायकों की सदस्यता चली भी गई तो उससे आप सरकार की सेहत पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा। उसे 70 सीटों वाली विधानसभा में 67 सीटों का बहुमत जो हासिल है। लेकिन पंजाब सहित अन्य राज्यों से पहले अगर चुनाव आयोग दिल्ली की इन 21 सीटों पर चुनाव करवा दे और आप को इस बार सभी सीटें न मिलें तो पंजाब में उसकी फजीहत जरूर हो जाएगी।
21 विधायकों के बाद अब और 27 सीटों का मामला सामने आने के बाद सरकार की मुश्किल और बढ़ गई है। संयोग से इन 27 विधायकों की सूची के 11 विधायक संसदीय सचिव मामले में भी फंसे हैं। यानी आप के 16 अन्य विधायक भी इस बार सदस्यता जाने के लपेटे में आ सकते हैं। एक साथ 37 विधायकों की सदस्यता खत्म होने के बाद तो दिल्ली की सरकार का बचना खासा मुश्किल हो जाएगा।
केजरीवाल सरकार को यह डर भी सता रहा है कि शुंगलू समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक होने से उनकी बची-खुची साख भी खत्म सकती है। चार अगस्त को हाई कोर्ट ने दिल्ली के अधिकारों पर अपना फैसला सुनाया और उपराज्यपाल को इसका प्रशासक बताया। इस फैसले के बाद उपराज्यपाल ने एक प्रशासनिक आदेश से पूर्व सीएजी (नियंत्रक व महालेखा परीक्षक) वीके शुंगलू की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की एक समिति बनाई। इसके बाकी दो सदस्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त प्रदीप कुमार हैं। समिति को आप सरकार के डेढ़ साल के कार्यकाल की सभी फाइलों की जांच सात बिंदुओं पर करनी है। पहले समिति को छह हफ्ते का समय दिया गया था, लेकिन अब उपराज्यपाल ने इसे दो दिसंबर तक बढ़ा दिया है। राष्ट्रमंडल खेल घोटालों की जांच के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इन्हीं वीके शुंगलू की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। यह अलग बात है कि उनकी रिपोर्ट सार्वजनिक करने के बावजूद दोषियों के खिलाफ पूरी कार्रवाई नहीं हुई।
दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि उपराज्यपाल को संविधान के तहत ही एक प्रशासनिक आदेश से समिति बनाने का अधिकार है। वे जिसे इस काम के लिए योग्य मानें, उससे जांच करवा सकते हैं। जांच रिपोर्ट आने पर उसे सार्वजनिक करना या उस पर कार्रवाई करना उनका विशेषाधिकार है। अभी तक की जांच की प्रगति को देखते हुए ही उपराज्यपाल ने कुछ मामले सीबीआइ को सौंपने की तैयारी की है।
जांच में जो जानकारी अधिकारिक रूप से बाहर आ रही है उसके मुताबिक, ज्यादातर फाइलों में गंभीर अनियमितताएं हैं। खुद को आम लोगों की सरकार कहने वाली केजरीवाल सरकार में रोजाना दिल्ली सचिवालय में किए जा रहे भोजन आदि के खर्च ही हजारों-लाखों में है। सरकार को शायद इस बात का अंदाजा है कि शुंगलू समिति की जांच में कुछ ऐसे सच सामने आ सकते हैं जिससे आम आदमी पार्टी के वजूद पर ही सवाल उठ सकते हैं। इसीलिए पूरी पार्टी बाकी कामकाज छोड़कर उपराज्यपाल को घेरने में लगी हुई है।