हिंदी के मशहूर उपन्यासकार, नाट्य लेखक और आलोचक मुद्राराक्षस का सोमवार को निधन हो गया। वह 82 साल के थे। उनके परिवार से मिली जानकारी के मुताबिक वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। लखनऊ में ही शिक्षा प्राप्त करने वाले मुद्राराक्षस बाद में कलकत्ता से निकलने वाली पत्रिका ज्ञानोदय के संपादक भी रहे। मुद्राराक्षस का मूल नाम सुभाष चंद्र था। वह 21 जून 1933 को लखनऊ में पैदा हुए थे। उन्होंने उपन्यास, व्यंग्य, आलोचना, नाटक और बाल साहित्य रचा था। उन्होंने अनुवार्ता नामक पत्रिका का भी संपादन किया। वह आकाशवाणी से भी जुड़े रहे। उन्होंने हमेशा सामाजिक सरोकारों के पक्ष में लिखा। उनकी प्रमुख रचनाओं में आला अफसर, कालातीत, नारकीय, दंड विधान और हस्तक्षेप शामिल हैं। उन्हें साहित्य नाटक अकादमी पुरस्कार मिल चुका है।

साहित्यकार दूधनाथ सिंह ने मुद्राराक्षस के निधन पर गहरा दुख जताते हुए कहा कि 1950 के दशक में मुद्राराक्षस जब ज्ञानोदय के संपादक थे, तभी से उनकी मित्रता हुई थी। उन्होंने कहा, ‘मुद्राराक्षस ने अपनी लेखकीय जिंदगी कलकत्ता में ही शुरू की थी। हमेशा से वह तेज और तुर्श लेखन के प्रति ईमानदार थे। उनकी कहानियां इसी का सुबूत पेश करती हैं। उन्होंने लखनऊ लौट कर कई नाटक भी लिखे।’ सिंह ने बताया कि मुद्राराक्षस ने दलितों और स्त्रियों के मसलों को साहित्य में बढ़-चढ़कर उठाया। उनका लेखन गैर-पारंपरिक, नया, अनोखा और अपनी तरह का अनूठा है। उन्होंने किसी भी परंपरा और शैली का अनुगमन नहीं किया। उन्होंने खुद अपना एक नया रास्ता बनाया, जो कि हर मौलिक लेखक का पहला धर्म है। मैं उनकी स्मृति को नमन करता हूं।