विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे समाज में ‘लैंगिक अवसाद’ (जेंडर डिस्फोरिया) को लेकर अधिक जागरूकता की जरूरत है ताकि जो बच्चे अपने अंदर विपरीत लैंगिक झुकाव महसूस करते हैं और शारीरिक और मानसिक रूप से जिनमें लिंग परिवर्तन जरूरी हो, उन पर ध्यान दिया जा सके और समाज उन्हें स्वीकार कर सके।
मध्य प्रदेश में जन्मी कोमल आज कबीर बन गई है और सर्जरी व हार्मोनल परिवर्तन के बाद उसने पूरी तरह लड़के का रूप ले लिया है। बचपन से अपने अंदर लड़कों जैसी प्रकृति और कुछ असामान्य प्रक्रियाओं को महसूस करने वाली कोमल ने 20-21 साल की उम्र में अपने माता-पिता को साफ कर दिया था कि उसे अपना लिंग परिवर्तन कराना है और वह लड़के के रूप में ही जीवन खुशी से जी सकती है। कोमल ने राजधानी के शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल में प्लास्टिक और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी विभाग के प्रमुख से संपर्क साधा और उनकी टीम ने कुछ महीने पहले कोमल की सर्जरी की है। आज वह पूरी तरह लड़का है।
डाक्टर ने कहा कि जन्म के कुछ साल बाद बच्चे में शारीरिक हावभाव और दिखावट व ‘जेंडर’ यानी दिमागी लैंगिक अभिरूचियों में एकरूपता नहीं होने का आभास होने लगे तो यह स्थिति ‘जेंडर डिस्फोरिया’ होती है और यह आभास पूरी तरह प्राकृतिक होता है। अगर समाज में जागरूकता हो तो ऐसे अवसाद से जूझ रहे बच्चों या किशोरों को उनकी खुशी से जीवन जीने के लिए रास्ता दिखाया जा सकता है।
टीसीएस में कार्यरत सॉफ्टवेयर इंजीनियर कबीर के अनुसार आज वह खुद को पूरी तरह लड़के की तरह ही महसूस करता है और सर्जरी व हार्मोन के प्रभाव से आवाज, शारीरिक हावभाव आदि भी पूरी तरह लड़के के हासिल कर चुका है।
15 जुलाई को ‘नेशनल प्लास्टिक एंड रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी दिवस’ के मौके पर डॉ गुप्ता ने मीडिया के सामने ऐसे कुछ मामले पेश किये जिनमें मरीजों की दुर्लभ प्लास्टिक सर्जरी आदि कर उन्हें नया जीवन प्रदान किया गया।