बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ए आई एम आई एम ने सीमांचल क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन करते हुए पांच सीटें अपने नाम कीं। इस परिणाम के बाद सवाल उठने लगे कि आखिर महागठबंधन ने AIMIM को साथ क्यों नहीं जोड़ा। अगर ऐसा हुआ होता तो क्या सीमांचल का नतीजा बदल सकता था?

इंडियन एक्सप्रेस ने बिहार चुनाव के नतीजों के बाद असदुद्दीन ओवैसी से खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने महागठबंधन, बीजेपी, मुस्लिम नेतृत्व, सीमांचल के विकास और “मत काटने” के आरोपों पर खुलकर जवाब दिए।

प्र. चुनाव के दौरान आपको पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया गया। फिर भी AIMIM सीमांचल में पांच सीटें कैसे जीत गई? बाकी दल किस बात को समझने में नाकाम रहे?

उ. पिछली बार भी यही देखने को मिला था। महागठबंधन ने हमारे चार विधायकों को तोड़ लिया था। उन्हें लगा था कि हमारी पार्टी खत्म हो जाएगी, लेकिन मैंने तब भी कहा था कि हमें जो वोट मिलते हैं, वह पार्टी के सिंबल पर मिलते हैं, किसी एक उम्मीदवार के कारण नहीं।

हमारे इकलौते विधायक अख्तरुल इमान ने लगातार विधानसभा में जनता की बात उठाई। ज़मीनी स्तर पर संगठन ने पूरी मेहनत की। लोकसभा चुनाव में भी इमान साहब को दो लाख से ज्यादा वोट मिले थे।

सीमांचल में असल लड़ाई केवल हम लड़ रहे हैं; बाकी पार्टियों ने इस क्षेत्र को बर्बाद कर दिया है। लोगों ने हमारे काम को देखा, हम पर भरोसा किया और इसीलिए हमने पांच सीटें जीतीं। बलरामपुर तो हम केवल 350 वोट से हारे। जिन चार विधायकों ने हमें छोड़कर आरजेडी ज्वाइन की थी, उनमें से एक को इस बार आरजेडी ने टिकट दिया, लेकिन उसकी जमानत तक ज़ब्त हो गई। यह हमारी संगठनात्मक ताकत का सबूत है। सीमांचल के लोगों का मैं शुक्रिया अदा करता हूं।

प्र. आमतौर पर मुसलमान बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष का साथ देते हैं। लेकिन सीमांचल में मुसलमानों ने आपको क्यों चुना? उन्होंने अन्य सेक्युलर दलों को क्यों छोड़ा?

उ. सबसे पहले यह समझिए कि लोगों का विपक्षी दलों पर अब भरोसा नहीं रहा। इन पार्टियों को मुसलमान का ज़िक्र करने तक में शर्म आती है। जब बात करते हैं तो केवल गालियां देने के लिए। लोकसभा चुनाव में महागठबंधन तभी सफल हुआ जब उन्होंने संविधान का मुद्दा उठाया, लेकिन विधानसभा चुनाव में हम लोगों को समझाने में सफल रहे कि सीमांचल में विकास अब तक क्यों नहीं हो पाया।

जो क्षेत्र देश का इतना बड़ा राजनीतिक भूगोल है, वह विकास से अछूता क्यों है? स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार चरम पर है, और हमने इसे खुलकर बताया।

लोगों को मुस्लिम नेतृत्व की भी इच्छा थी। जब हर समुदाय को अपना प्रतिनिधित्व मिल सकता है, तो मुसलमानों को क्यों नहीं? बिहार में मुस्लिम आबादी बड़ी है, पर टिकट बांटने में मुसलमानों को सिर्फ “लॉलीपॉप” दिया जाता है।

बीजेपी मुस्लिम को टिकट ही नहीं देती। इस बार जेडीयू ने भी केवल दो मुस्लिम प्रत्याशी उतारे। तो क्या मुसलमान सिर्फ वोट बैंक बनकर रह जाए? हम लोगों ने बताया कि उनका भी अधिकार है, और लोगों ने इसे समझा। पिछली 11 साल से हम यही कर रहे हैं।

प्र. आरजेडी ने दावा किया कि अगर वे आपके साथ गठबंधन करते तो हिंदू वोट छिटक जाते। इस दलील को आप कैसे देखते हैं?

उ. यह भी हिंदुत्व की ही एक किस्म है-चाहे सॉफ्ट हिंदुत्व हो या हार्ड हिंदुत्व, फर्क नहीं पड़ता। आरजेडी को जाति के आधार पर टिकट बांटने में कोई समस्या नहीं होती। कांग्रेस भी यही करती है। तब उन्हें यह डर नहीं लगता कि कोई जाति बीजेपी को फायदा दे देगी। पर मुसलमानों पर आते ही अचानक उन्हें “बीजेपी को फायदा पहुंचने” का डर लगने लगता है। क्या हम केवल बंधुआ मजदूर बनकर रह गए हैं? क्या बीजेपी को रोकना सिर्फ मुसलमानों की जिम्मेदारी है? और अगर उनके साथ नहीं आए तो क्या हिंदू वोट मिल गए? अभी तो वैसा कुछ हुआ भी नहीं।

प्र. क्या आपको लगता है कि मुस्लिम प्रतिनिधित्व की आपकी मांग ने सीमांचल में आपकी सफलता को बढ़ावा दिया?

उ. मैं हमेशा सीमांचल की पर कैपिटा इनकम, वहां के भेदभाव और बुनियादी समस्याओं की बात करता हूं। आप देख लीजिए—आईआईटी, इंडोर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, बड़े संस्थान-सब राजगीर या पटना में हैं, सीमांचल में नहीं। बिहार सरकार खुद कहती है कि राज्य के 50% मुसलमान गरीबी रेखा से नीचे हैं। सीमांचल में यह और भी अधिक है। किशनगंज का 50% क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित रहता है। 16 साल की उम्र में पलायन शुरू हो जाता है। किसानों के पास उपज बेचने के लिए मार्केट नहीं है। हमने वो मुद्दे उठाए जो जनता को सीधे प्रभावित करते हैं। इसलिए लोगों ने हमारी बात को गंभीरता से लिया।

प्र. विरोधियों का आरोप है कि आपकी वजह से वोट बंट जाते हैं और इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलता है। आप क्या कहते हैं?

उ. यह ‘वोट कटवा’ वाला आरोप हम पर हर बार लगाया जाता है। एक बात बताइए-लोकसभा में 543 सीटें हैं। हमने वहां कितनी सीटों पर चुनाव लड़ा?

क्या आरजेडी ने कभी बिहार में 2004 के बाद अकेले सरकार बनाई? लोगों की समझदारी पर सवाल उठाना गलत है। हमने ज़मीन पर काम किया है। क्या मैं सिर्फ इसलिए घर बैठ जाऊं कि कोई बेबुनियाद आरोप लगा दे? और यह लोग क्या ही बोलेंगे-12 सीटों पर तो वे खुद ‘फ्रेंडली फाइट’ लड़ रहे थे।

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