एक प्राधिकरण और एक ही अधिकारी की निगरानी में दो तरह के मानक लोगों के गले नहीं उतर रहा है। खासकर एक ही गलती के लिए विभाग की सख्ती जब आम लोगों पर ज्यादा और नेताओं पर कम दिखे सवाल उठना लाजमी है। दिल्ली से लगे औद्योगिक महानगर की सड़कों पर एक नामी मिठाई एवं रेस्तरां प्रतिष्ठान के शुभारंभ का प्रचार होर्डिंग लगाकर किया गया। इन बैनरों पर बकायदा एक बड़ी राजनीतिक पार्टी के बड़े नेताओं की तस्वीरें भी लगी थी। प्रचार की शिकायत जब प्राधिकरण तक पहुंची तो अधिकारियों को उल्लंघन की एवज में निर्देश और प्रतिष्ठान पर जुर्माने की घोषणा कर दी। तभी बेदिल ने देखा कि नवरात्रि और रामलीला आयोजन को लेकर पूरे शहर में तमाम जगहों पर नेताओं के मुस्कुराती तस्वीरों के साथ बैनर व होर्डिंग लगे थे। और वह भी बिना इजाजत के। ताज्जुब तो तब हुआ जब इस बार कोई भी जुर्माने की घोषणा नहीं की गई। जबकि सार्वजनिक तौर पर प्रचार करने से पहले प्राधिकरण की अनुमति और प्रचार शुल्क देना अनिवार्य है। अब ऐसे दोहरे नियम भला किसे नहीं चुभेंगे।
पुराना सौ दिन
दिल्ली में आगामी वर्ष होने वाले निगम चुनावों की सुगबुगाहट तेज है। यहां सत्ताधारी दल की तरफ से भले ही चेहरों पर कोई फैसला न लिया गया हो, मगर पुरानी गलतियां सुधारने की कवायद जारी है। पार्टी के सूत्रों ने बताया कि बीते चुनाव में सभी नए चेहरे मैदान में उतारे थे। शायद इसी कारण से पार्टी निगम चुनाव में जीत भी गई थी। मगर इस जीत से कई सक्रिय नेताओं के मुंह फूल गए थे और वे सब पार्टी से दूरी बनाने लग गए थे। बेदिल को पता चला है कि अब इन चेहरों को फिर से मैदान में उतारने का दांव लगाने की तैयारियां चल रही हैं। दिल्ली में नगर निगम की गद्दी पर बैठी पार्टी को लगता है कि ये नेता अपनी सीट के अलावा आसपास की सीटों पर असर डालेंगे और पार्टी को संकट से बचाने में मददगार साबित होंगे। इससे यह दिखता है कि भले नए लोगों से मैदान मार लिया हो लेकिन पुराना हमेशा ही सौ दिन चलता है।
अच्छा भूले नेताजी
विपक्ष के नेता प्रदेश कार्यालय में हर दिन किसी ना किसी मुद्दे पर पत्रकारों से बातचीत कर सत्ता पक्ष पर निशाना साधते रहते हैं। नेताजी अपने साथ कुछ दस्तावेज भी लेकर आते हैं, ताकि ये ना लगे कि उनके पास तथ्यों की कमी है। पर कई बार देखा गया है कि बातचीत शुरू करने के बाद नेताजी भूल जाते हैं कि किस मुद्दे पर उन्होंने अपनी बात शुरू की थी। ऐसे में उनके साथ बैठे पार्टी के प्रवक्ता या फिर पार्टी के वरिष्ठ नेता उन्हें बीच में याद दिलाते नजर आते हैं कि आज का मुद्दा यह नहीं है, जिस पर वह बीते कई मिनट से बोले जा रहे हैं। हालांकि, मुद्दा याद दिलाने के बाद नेताजी फिर से तय मुद्दे पर बोलना शुरू कर देते हैं तो रुकने का नाम नहीं लेते। अभी हाल कि दिनों में उम्र दराज पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ यह समस्या पत्रकारों के दौरान कहीं अधिक देखने को मिल रही है।
राजनीतिक करवट
दिल्ली में होने वाले निगम चुनावों में अभी छह महीने बाकी हैं। पार्षदों की अदला-बदली का ऐसा दौर चल रहा है कि पता ही नहीं चलता है सुबह ऊंट किस करवट बैठेगा। बीते दिनों कांग्रेस के कुछ पार्षद दूसरी पार्टियों में शामिल होने की तैयारी में थे। रात में वे भाजपा में जाने का विचार कर रहे थे और ऐसा शगूफा छोड़ भी दिया गया,लेकिन सुबह पता चला कि वे सब आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। तभी किसी ने मजाक किया कि देखते रहिए चुनाव तक क्या-क्या होता है।
हवा बना हथियार
दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में चुनावी माहौल ने दस्तक दे दी है। चर्चा में चल रही आम आदमी पार्टी इन राज्य सरकारों को घेरने के सर्दियों में होने वाले प्रदूषण को अपना हथियार बनाने जा रही है। इसके लिए हर राज्य की जनता के समक्ष बहुचर्चित दिल्ली माडल पेश किया जा रहा है। पार्टी राज्यों पर इसे लागू करने के लिए दबाव भी बना रही है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि सर्दियों में ये हमले और तेज होंगे और मामले में भाजपा के राज्यों को इस पर जवाब देना भारी पड़ेगा।
-बेदिल
दोहरे नियम
एक प्राधिकरण और एक ही अधिकारी की निगरानी में दो तरह के मानक लोगों के गले नहीं उतर रहा है।
Written by जनसत्ता
नई दिल्ली

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First published on: 18-10-2021 at 06:20 IST