Arnav Chandrasekhar

Amazing Old Lady: दिल्ली के साकेत (Saket) में एक छोटे से मंदिर के पास, एक बुजुर्ग महिला कड़ाके की ठंड के बीच शाम को आग के पास कुत्तों की छोटी मंडली से घिरी हुई बैठी है। 80 वर्षीय प्रतिमा देवी (Pratima devi), जिन्हें स्थानीय लोग अम्मा (Amma), क्षेत्र में काफी जाना-पहचाना नाम है। अधिकतर लोगों को पता है कि वह जब से यहां आई हैं कुत्तों की देखभाल (Dogs Care) ही कर रही हैं, लेकिन हाल ही में, वह मुसीबतों में फंस गई हैं। कुत्तों के लिए अस्थायी आश्रय को एमसीडी (MCD) ने तोड़ दिया है। इससे कुत्तों और उनकी देखभाल करने वाले दोनों लोग खुले आसमान के नीचे आ गये हैं। देवी ने कहा, “मंदिर के लिए थोड़ी जगह छोड़कर सड़क के बगल में आश्रय चलता था, लेकिन अब कुछ भी नहीं बचा है।”

नंदीग्राम से दिल्ली आकर पूरा जीवन पशु देखभाल में लगा दिया

उन्होंने कहा, “हम पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम से हैं। मैं 1984 में दिल्ली आ गई क्योंकि मेरे बेटे यहां काम कर रहे थे। तब से हम कुत्तों की मदद कर रहे हैं।” अब केवल कुछ बर्तन हैं जिनमें वह कुत्तों के लिए खाना पकाती है, बड़ी-बड़ी चटाई जिन पर वे सोते हैं, और मलबे से घिरी हुई एक खाट है, जिसके पास अम्मा बैठती हैं।

संगम विहार में अपना घर है, लेकिन कुत्तों से दूर नहीं जाना चाहती हैं अम्मा

देवी के बड़े बेटे सप्पन ने कहा, “मेरा संगम विहार में घर है, लेकिन मेरी मां कुत्तों को नहीं छोड़ेगी और मैं उन्हें अकेला नहीं छोड़ूंगा।” उनके छोटे बेटे टप्पन ने कहा, “पहले भी 2013 और 2018 में शेल्टर को तोड़ा जा चुका है। हमें कुत्तों की देखभाल के लिए अधिकारियों से कभी कोई मदद नहीं मिली है। यहां के कुत्ते समझदार हैं, वे यहां रहते हैं, क्योंकि हम उनके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं। उन सभी का टीकाकरण और नसबंदी की गई है।”

उन्होंने आगे कहा, ‘यह कुत्तों के व्यवहार को समझने की भी बात है…यहां उन्हें ठीक से खिलाया जाता है, इसलिए वे शांत रहते हैं। कुछ आवारा कुत्ते हैं, कुछ लोग यहां छोड़ गए हैं… उनमें से कई अपने कुत्तों को यहां छोड़ देते हैं, लेकिन वे पालन-पोषण में मदद नहीं करते हैं।”

पहले 20-25 कुत्ते थे, अब दर्जनों हो गये हैं

आश्रय एक संयोग से बना था। सप्पन ने कहा, ‘1984 में हमारी चाय की दुकान थी और हमारी मां कबाड़ बेचा करती थीं। हमारे घर में एक कुत्ता था… तब हम 20-25 कुत्तों को खाना खिलाते थे। धीरे-धीरे संख्या बढ़ती गई। तब से हम अपने दोस्त पवन के साथ कुत्तों की मदद कर रहे हैं। यहां एक सिगरेट की दुकान थी, जिसे हम आश्रय के साथ संचालित करते थे ताकि खर्च को पूरा किया जा सके लेकिन इसे भी तोड़ दिया गया था।”

कुत्तों को दूध, ब्रेड, चिकन, चावल, बिस्किट और ब्रांडेड डॉग फूड खिलाया जाता है

सप्पन, पहले निर्माण क्षेत्र में काम करते थे, लेकिन अब आश्रय में पूर्णकालिक रूप से जुट गये हैं। उन्होंने कहा, “भोजन की व्यवस्था करने के लिए, हम प्रति माह कम से कम 1.5 लाख रुपये खर्च करते हैं। कुत्तों को दूध, ब्रेड, चिकन, चावल, बिस्किट और ब्रांडेड डॉग फूड खिलाया जाता है। हम मदद के लिए आने वाले लोगों के दान की मदद से इसका प्रबंधन करते हैं। दान देने वालों में से कुछ लोग पास के थिएटर में फिल्में देखकर आते हैं और दान देते हैं तथा कुछ कुत्ता प्रेमी हैं, जो आकर कुछ दान दे जाते हैं। सप्पन जब यह बता रहे थे, तभी एक युगल दान देने के लिए वहां आए। वे कुत्तों के लिए बिस्कुट और कंबल, और अम्मा के लिए एक शॉल लेकर आए थे।

बेटे ने कहा, “यह कोई व्यवसाय नहीं है, बल्कि कुत्तों के लिए एक सेवा है।”

इन वर्षों में, उन्होंने कुत्तों की विचित्रताओं की समझ को जाना है, और उनमें से अधिकतर के लिए नाम रखे हैं। एक बूढ़ा भूरा कुत्ता, अमिताभ, शायद वहां सबसे पुराना है। एक छोटा कुत्ता, छुटकी, एक बहुत बड़े भेड़ पर जमकर गुर्राता है, जो जल्दबाजी में पीछे हट जाता है। उसको देखकर टप्पन हंसता है, कहा, “वह शेरनी है। दूसरे कुत्ते उसके बाद ही खाते हैं।” आश्रय के टूट-फूट हो जाने के बावजूद, उनमें से कोई भी वहां से जाने के लिए इच्छुक नहीं है। टप्पन ने कहा, “यह कोई व्यवसाय नहीं है, बल्कि कुत्तों के लिए एक सेवा है।”