धुरी यादव की हत्या पुलिस के सामने कई सवाल खड़ा कर गई। उसकी हत्या जमीन विवाद में, पुरानी रंजिश की वजह से, गैंगवार में , दुर्गा पूजा और कालीपूजा समिति में अपना दबदबा कायम करने या फिर किसी दूसरी वजह से हुई । ये अनुत्तरित सवाल खड़े है। हालांकि एसएसपी कहते है कि हत्या का कारण अभी साफ नहीं है। फिलहाल पुलिस के सामने सबसे बड़ा सिरदर्द उसकी लाश का अंतिम संस्कार कराना था। जो बगैर किसी हुलहुज्जत के मंगलवार को संपन्न हो गया। मगर पुलिस अब उसे अपने पुराने रिकार्ड तलाश कर पुराना गुंडा साबित करने की फिराक में है।
सोमवार को भागलपुर के अलग-अलग इलाकों में दो हत्याएं हुई। सबौर में एक लाश दीपक यादव की मिली। उसे भी गोली मारी गई थी। पुलिस ने इसे टिंकू हत्या कांड का नामजद बताया। यह बरारी का रहने वाला था। वहीं चिरंजीव उर्फ धुरी यादव की शाम ढलने के बाद उर्दुबाजार मोहल्ले में उसके अपने घर से कुछ दूरी पर बदमाशों ने तीन गोलियां मार हत्या कर दी। वह ठौर ही ढेर हो गया। वह स्थानीय दुर्गा पूजा और काली पूजा केंद्रीय महासमिति का महासचिव था। इन समितियों की आड़ में वह अपनी छवि साफ करने की कोशिश में था।
छोटी सी कामयाबी पर प्रेस कांफ्रेंस करने वाली भागलपुर पुलिस इन दोनों हत्याओं खासकर धुरी यादव के खून पर मौन है। काली प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान प्रशासन से उसकी हुई बकझक भी हत्या के बाद काफी चर्चा का विषय बनी है। हालांकि पुलिस ने हत्यारों को ढूंढने के लिए टीमें बनाकर कई संदेही ठिकानों पर छापे मारे है। मगर अभी कामयाबी नहीं मिली है।
वैसे भागलपुर गैंगवार के लिए काफी चर्चित रहा है। इसके थोड़ा अतीत में जाना जरूरी है। इनायतुल्ला अंसारी – सल्लन का गिरोह 1989 दंगा में भी अहम भूमिका निभाने में कामयाब माना जाता है। जिसके बीज समुआ मियां समेत उसके आठ साथियों के चंपानगर के नजदीक पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के बाद से ही पड़ गए थे। उस वक्त यहां के एसपी केएस द्विवेदी थे। जो बिहार के डीजीपी होकर रिटायर किए है। समुआ गिरोह अंसारी के लिए काम करता था। इसके बाद इसका भाई जाकिर मियां सक्रिय हुआ। वह भी अपने एक साथी वशिष्ठ के साथ 1993 में बरारी इलाके में मारा गया।
सल्लन खूनी खेल खेलने में माहिर था। और हिम्मतगर था। एएसपी ओहदे पर आए एमवी राव की इससे मुठभेड़ हो गई थी। उनके साथ बीएमपी की गोरख बटालियन के जवान थे। मगर सल्लन ने पीठ नहीं दिखाई और लगातार बम और गोलियों से पुलिस पर प्रहार करता रहा। नतीजतन एक लक्ष्मण नाम का जवान शहीद हो गया था। यह मतभेड थाना तातारपुर इलाके की है। कुछ दिनों बाद सल्लन भी मारा गया। यह 1991 की बात है।
सल्लन के गिरोह से ही गुडुल मिश्रा, पप्पू खान, रियाजुल खान , आजाद मियां , जुले मुन्ना , मोहम्मद मंजूर, दिनेश मंडल जुड़े नाम है जो मौत के घाट पहले ही उतर चुके है। सल्लन ने अपने जीते जी गैंगवार में अपने अब्बा और भाईजान को खोया। तो अंसारी ने अपने भाई शफीकुल्ला – भांजे व नजदीकी रिश्तेदार को गबाया। इसका खास तनवीर भी मारा गया। दर्जनों नाम पुलिस रिकार्ड इस गैंगवार हत्या के है। पूरी कहानी का बखान किया जाए तो किताब भी कम पड़ेगी।
धुरी यादव का नाम भी सल्लन और पप्पू खान से जोड़कर देखा जाता है। भागलपुर में रंगदारी और प्रेम पत्र के जरिए मौत का पैगाम भेजने का चलन भी इसी दौर की देन है। ” मांगी गई रकम दो वरना खलास” इतने ही शब्द उस पैगाम में होते थे। भागलपुर के दवा पट्टी और सिल्क के कई व्यापारी उस दौर की बात कर सहम उठते है। उस भयानक दौर से भागलपुर बहुत मुश्किल से उबरा है। जिसमें पुलिस के आलाधिकारियों की कड़ी मेहनत को आज भी लोग याद करते है। जिसे वर्तमान डीआईजी विकास वैभव और एसएसपी आशीष भारती बखूबी काबू किए है।
धुरी यादव की सोमवार सरेशाम हत्या ने विनोद साह की हत्या की याद ताजा करा दी। विनोद साह अपने जमाने का शार्प छुरेबाज था। उसके नाम की भागलपुर में बड़ी दहशत थी। यह दौर 1978 का था। पर बाद में उसने अपना रुख व्यापार और धर्म-कर्म में कर लिया था। एक शाम घंटाघर साईं मंदिर में भजन करते उसकी बदमाशों ने तड़ातड़ गोलियां दाग जान ले ली। और फरार हो गए। उस वक्त एसएसपी एमवी राव थे। यह 1999-2000 की बात है। मगर पुलिस ने उसे पुराना गुंडा बता हाथ झाड़ लिया था। धुरी यादव भी अपनी पिछली छवि को ठीक करने के लिए पूजा समितियों और सामाजिक कामों व जमीन के कारोबार से जुड़ गया था।
प्रशासन भी शांति समितियों बगैरह में शामिल कर उसे तरजीह देता था। थानों की बैठकों और मोहल्ला कमेटी में सक्रिय भूमिका में दिखता था। उसकी हत्या को अब पुलिस प्रशासन किस तौर पर देखती है। यह सबसे बड़ा सवाल है। हालांकि तातारपुर पुलिस उसके पुराने रिकार्ड तलाश रही है। जिसमें वह डोजियर बताया जा रहा है।

