राजस्थान में निजी स्कूलों पर फीस एक्ट लागू होने के बावजूद उनमें भारी मनमानी हो रही है। इस एक्ट के तहत स्कूल स्तर पर फीस निर्धारण समिति भी बनाई जाती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में 24 हजार से ज्यादा स्कूलों में ऐसी समितियां बन गई हैं, पर हकीकत में यह सब कागजों में ही है। राजस्थान में लागू फीस एक्ट के मुताबिक, हर स्कूल में फीस निर्धारण समिति बनेगी। इस समिति में स्कूल के 5 कर्मचारी और 5 अभिभावक होंगे। समिति में अध्यक्ष और सचिव दोनों ही स्कूल से होंगे। अभिभावकों का चयन विद्यालय प्रशासन लाटरी से करेगा। फीस निर्धारण की बैठक में 5 सदस्यों का होना जरूरी है। इस मामले में सरकार ने एकखंडीय फीस विनियामक कमेटी और उसके बाद पुनरीक्षण समिति बना रखी है। इन दोनों अपीलीय समितियों में सरकारी अफसरों को ही रखा गया है। इससे ही अभिभावकों को को संरक्षण नहीं मिल पाता है।

निजी स्कूल संचालक इन समितियों से सांठगांठ कर मनमाने तरीके से फीस वसूली करते हैं और उन्हें बच्चों की कॉपी-किताबें और ड्रेस आदि स्कूल से ही खरीदने को मजबूर करते हैं।
इस एक्ट में एक कमी यह भी है कि फीस निर्धारण समिति के फैसले से स्कूल असंतुष्ट है तो वह अपील समिति में जा सकता है, पर अभिभावक नहीं जा सकते हैं। अभिभावकों के स्कूल के खिलाफ अपील नहीं करने के प्रावधान से भी निजी विद्यालयों को मनमानी करने की खुली छूट मिल जाती है। राजस्थान अभिभावक संघ के अध्यक्ष सुरेश शर्मा का कहना है कि स्कूल मर्जी से सदस्य चुनते हैं और मर्जी से ही फीस तय करके, उसी को शिक्षा विभाग में भेज देते हैं। स्कूलों से आने वाली इन सूचनाओं को शिक्षा विभाग के अधिकारी अपनी फाइलों में जमा कर लेते हैं।

अभिभावकों को अपील का अधिकार नहीं होने से और अफसरों और स्कूल संचालकों की मिलीभगत के कारण हालत खराब है। फीस तय करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई – इसे परखने वाला कोई नहीं। इसलिए सरकार को एक्ट में संशोधन करके अभिभावकों के हितों का ध्यान रखना चाहिए। शर्मा का कहना है कि एक्ट के खिलाफ 2017 में कोर्ट में केस दायर किया गया था। निजी स्कूलों की मनमानी को विधानसभा में उठाने वाले निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल का कहना है कि सरकार की ढिलाई के चलते ही अभिभावकों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। उनका कहना है कि सरकार ने कानून तो बना दिया पर स्कूलों की मनमानी को रोकने के लिए और एक्ट की पालना के लिए किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं की।

शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी का कहना है कि निजी स्कूलों की मनमानी की शिकायतों पर सरकार कार्रवाई करती है। मनमानी फीस वसूली के मामले में उनका कहना है कि अभिभावक सीधे ही सरकार को शिकायत भेज सकते हैं। स्कूलों को पाबंद किया गया है कि स्कूल में किताबें नहीं बेची जाएं। इसके लिए निर्देश दिए गए हैं कि कम से कम तीन दुकानों पर पुस्तकें मिलनी चाहिए। निजी स्कूलों को कहा गया है कि वे पांच साल तक अपनी ड्रेस नहीं बदले।