पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगों के मामलों में गिरफ्तार एक स्कूल के मालिक को राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत ने जमानत दे दी। कोर्ट ने पाया कि पुलिस ने आरोपी के खिलाफ चार्जशीट में उसके पीएफआई, पिंजरा तोड़ ग्रुप और मुस्लिम मौलवियों से लिंक के जो साक्ष्य पेश किए वो अलग हैं। कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में इसकी पुष्टि नहीं होती कि शख्स घटना के वक्त घटनास्थल पर मौजूद था। बता दें कि राजधानी स्कूल के मालिक फैसल फारूक उन आठ लोगों में शामिल हैं जिन्हें 24 फरवरी को शिव विहार में स्कूल के बाहर दंगा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। पीएफआई से संपर्क होने के आरोप में वो आठ मार्च से जेल में बंद थे। फारूक विक्टोरिया स्कूल के मालिक भी हैं और दंगों के दौरान उनके दोनों स्कूलों को नुकसान पंहुचा था।

दिल्ली पुलिस द्वारा तीन जून को चार्जशीट दाखिल करते समय में संक्षिप्त नोट में दावा किया गया कि दंगे से जुड़ी मामले की जांच में पता चला है कि फारूक के पीएफआई के प्रमुख सदस्यों, पिंजरा तोड़ ग्रुप, जामिया समन्वय समिति, हजरत निजामुद्दीन मरकज और देवबंद सहित कुछ अन्य मुस्लिम मौलवियों से संबंध थे। चार्जशीट में पुलिस ने ये भी दावा किया कि फारूक के कहने पर डीआरपी कॉन्वेंट स्कूल (राजधानी स्कूल के करीब में और प्रतिद्वंद्वी) दो पार्किंग स्थल, अनिल स्वीट्स को भीड़ द्वारा व्यवस्थित रूप से नुकसान पहुंचाया गया।

इधर फैसल को जमानत देने वाले अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने सुनवाई के दौरान पाया कि गवाहों के बयानों में विरोधाभास है और जांच अधिकारी (IO) ने अभियोजन पक्ष के गवाह के पूरक बयान दर्ज करने की कोशिश की थी। आदेश के मुताबिक गवाह का पहला बयान 8 मार्च को शायद रिकॉर्ड किया गया था, जिसमें उन्होंने दोपहर 1.30 बजे के करीब राजधानी पब्लिक स्कूल के गेट के सामने फारूक को देखने का दावा किया था। फिर उसने आगे दावा किया कि उसने फारूक को स्कूल के गार्ड को स्कूल के अंदर मुस्लिम व्यक्तियों को अनुमति देने के लिए कहते सुना। वहीं कोर्ट ने आदेश में कहा कि 11 मार्च को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज उनके बयान में उसने आरोपी के घटना स्थल पर होने से जुड़ा एक भी शब्द नहीं कहा या फिर स्कूल के गार्ड को फारूक को कुछ बताते हुए सुना।