राजधानी दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था गंभीर संकट से जूझ रही है। रोजाना लगभग 30 लाख लोग बसों से यात्रा करते हैं, लेकिन अब राजधानी में बसों की संख्या घटकर 5,000 से भी नीचे आ गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि शहर को यातायात दबाव संभालने और जनता को राहत देने के लिए 11,000 बसों की जरूरत है।

बसों की भारी कमी का सीधा असर आम जनता पर पड़ रहा है। खासकर दफ्तर के समय में बस स्टाप पर लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं। पहले जहां हर 10-15 मिनट में बस आ जाती थी, अब यात्रियों को 30 मिनट से ज्यादा इंतजार करना पड़ रहा है। यमुनापार के क्षेत्रों में हालात और भी खराब हैं। यहां बस रूटों के पुनर्निर्धारण और देवी नामक छोटी बसों के अपर्याप्त प्रचार-प्रसार के कारण लोग भ्रमित हैं।

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कई पुराने रूट या तो बंद कर दिए गए हैं या उनमें बसें बेहद कम कर दी गई हैं। बसों की अनुपलब्धता का असर आटो और टैक्सी किराए पर भी देखने को मिल रहा है। यात्रियों को मजबूरन महंगे निजी साधनों का सहारा लेना पड़ रहा है, जिससे रोजमर्रा की यात्रा अब आर्थिक बोझ बनती जा रही है।

एक बस पर तीन-तीन परिचालकों की तैनाती

हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि एक बस पर तीन-तीन कंडक्टर ‘आन ड्यूटी’ दिख रहे हैं, लेकिन सड़कों पर बसें ही नहीं दिख रहीं। राजघाट डिपो में बस और परिचालकों (कंडक्टरों) का अनुपात असंतुलित हो चुका है।

एक अधिकारी ने बताया कि यहां 60 बसों पर करीब 150 कंडक्टर तैनात हैं। मसलन, एक बस पर तीन-तीन कंडक्टरों की ड्यूटी लगाई जा रही है, जबकि बसें सड़कों से गायब हैं। हाल ही में रूट नंबर 118 (पुरानी दिल्ली से मयूर विहार फेज-3) पर भी ऐसी स्थिति देखी गई। बीते चार महीनों में दिल्ली में कुल 998 बसें सेवा से हटाई जा चुकी हैं। जुलाई में 452, सितंबर में 462 और अक्तूबर में अब तक 84 बसें हटाई गईं हैं। इसके अलावा 533 क्लस्टर बसें टेंडर न बढ़ने की वजह से सेवा से बाहर हो गईं। इस प्रकार अब तक कुल 2,820 बसें सड़कों से हट चुकी हैं।