दिल्ली हाई कोर्ट ने पत्नी द्वारा पति पर अवैध रिश्ते का झूठा आरोप लगाने को क्रूरता बताते हुए सालों से अलग रह रहे दंपत्ति के बीच तलाक को मंजूरी दे दी। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि पति के ऊपर अवैध संबंधों का आरोप लगाना सही नहीं था और क्रूर भी था। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को भी खारिज कर दिया, जिसमें पति-पत्नी को अलग-अलग रहने को कहा गया था।
दंपत्ति की शादी साल 1978 में हुई थी और शादी के कुछ सालों के बाद पत्नी अपने पति पर विधवा भाभी के साथ अवैध संबंध बनाने का आरोप लगाया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसकी पत्नी उसके ऊपर बेवजह शक करती है, सास का ख्याल नहीं रखती और अभद्र भाषा का इस्तेमाल करती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों ने साल 2002 में निचली अदालत में तलाक की अर्जी दी थी, जिसके बाद कोर्ट द्वारा दोनों के बीच न्यायिक अलगाव को मंजूरी दे दी गई थी। उसके बाद से ही दोनों अलग रह रहे थे। न्यायिक अलगाव वह अवधी होती है, जिसमें पति-पत्नी को तलाक के मामले पर अलग रहकर सोचने का वक्त दिया जाता है।
वहीं पत्नी ने अपनी याचिका में कहा था कि उसके पति का अपनी भाभी के साथ अवैध संबंध हैं और वह उसे धोखा दे रहा है। हाई कोर्ट ने पत्नी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि उसके द्वारा लगाए गए आरोप क्रूर हैं और ऐसे में तलाक की मंजूरी दी जाती है। हाल ही में मुंबई हाई कोर्ट ने भी शारीरिक संबंध न बनने के कारण एक शादी को खारिज करने का फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि शादी के बाद भी संबंध न बनाना शादी को खारिज करने का कारण हो सकता है। दरअसल, कोल्हापुर में रहने वाले पति-पत्नी की शादी के 9 सालों के बाद भी दोनों के बीच शारीरिक संबंध नहीं बने थे और दोनों कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। लड़ाई लड़ते हुए नौ साल हो चुके थे। पत्नी का कहना था कि उसके पति ने सादे कागजों पर हस्ताक्षर करवाकर उससे धोखे से शादी कर ली थी।

