दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मुकुल मुद्गल ने कहा कि मध्यस्थता की कानूनी कार्यवाहियों में समयसीमा की व्यवस्था करने से विवादों के त्वरित समाधान में मदद मिलेगी।‘भारत में मध्यस्थता का बदलता दायरा’ विषय पर परिचर्चा के दौरान मुद्गल ने नए अध्यादेश का उल्लेख करते हुए कहा, ‘इससे विवादों के त्वरित समाधान में मदद मिलेगी। अगर वकील पहले से ही दावा तैयार कर लेता है और पहली सुनवाई के दौरान ही इसे प्रस्तुत कर देता है तो पीठ की बैठकों का बहुत सारा समय बच सकता है।’

नए ‘मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन) विधेयक-2015’ के अनुसार मध्यस्थता न्यायाधिकरण को मध्यस्थों की नियुक्ति की तारीख से 12 महीने के भीतर फैसला देना होगा, हालांकि दोनों पक्षों की सहमति से इस समयसीमा को छह महीने के लिए और बढ़ाया जा सकता है।न्यायमूर्ति मुद्गल ने यह भी कहा कि अगर इस समयसीमा के भीतर फैसला नहीं दिया जाता है तो मध्यस्थों का अधिकार स्वत: खत्म हो जाएगा और इसे आगे बढ़ाने का फैसला केवल अदालतों द्वारा ही किया जा सकता है।

उन्होंने संशोधन को बेहतर करार देते हुए कहा कि इससे भारत में मध्यस्थता के संदर्भ में सकारात्मक संदेश जाता है। उनके अलावा वकील अमल कुमार गांगुली, कोका-कोला (भारत एवं दक्षिण-पश्चिम एशिया) के उपाध्यक्ष (विधि) देवदास बालिगा और खेतान एंड कंपनी से संबंधित संजीव के कपूर ने इस परिचर्चा में भाग लिया।

नए अध्यादेश में मध्यस्थता करने वालों के लिए फीस की सीमा भी तय करने की बात है जिससे संबंधित पक्षों को काफी सुविधा होगी। गांगुली ने कहा कि किसी भी मामले में मध्यस्थता की अच्छाई या बुराई मध्यस्थता कराने वालों पर निर्भर करती है। बालिगा ने कहा कि फीस की सीमा तय करना मध्यस्थता के लिए जाने वालों के लिये वरदान होगा क्योंकि इससे उन्हें बजट तय करने में सहायता मिलेगी।