मुख्य सचिव अंशु प्रकाश मारपीट मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। कोर्ट ने मामले की छानबीन के लिए दिल्ली के पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक को अतिरिक्त पुलिस आयुक्त स्तर के अधिकारी को नियुक्त करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने विशेष हिदायत देते हुए स्पष्ट किया कि संबंधित अफसर पूर्व में इस मामले की जांच से जुड़ा न रहा हो। ट्रायल कोर्ट ने वरिष्ठ अधिकारी की अर्जी को स्वीकार करते हुए दिल्ली पुलिस को यह आदेश दिया है। बता दें कि इस मामले में पुलिस की ओर से कोर्ट में पहले ही आरोपपत्र दाखिल किए जा चुके हैं। इसमें सीएम केजरीवाल के अलावा डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया समेत 13 विधायकों को आरोपी बनाया गया है। दिलचस्प है कि इस हाईप्रोफाइल मामले में केजरीवाल के ही तत्कालीन सलाहकार वीके जैन को मुख्य चश्मदीद गवाह बनाया गया है। दिल्ली पुलिस ने बताया था कि सीएम केजरीवाल ने वीके जैन के माध्यम से ही देर रात बार-बार फोन कर मुख्य सचिव अंशु प्रकाश को अपने आवास पर बुलवाया था। जैन के गवाह बनने से सीएम केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ गई थीं। अब कोर्ट ने अंशु प्रकाश की अर्जी को स्वीकार करते हुए दिल्ली पुलिस के आयुक्त को मामले की छानबीन के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया है।
Delhi Chief Secretary assault case: A Delhi court allows application of Delhi govt chief secretary. Court directs Commissioner of Police to appoint an officer not below the rank of additional commissioner of police who has not been involved in investigation of this case earlier.
— ANI (@ANI) October 22, 2018
अंशु प्रकाश ने खुद दर्ज करवाई थी एफआईआर: दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश ने इस मामले में खुद एफआईआर दर्ज करावाई थी। उन्होंने आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्ला खान और अन्य पर गंभीर आरोप लगाए थे। इस घटना के बाद केजरीवाल सरकार और दिल्ली के आईएएस अफसरों के बीच ठन गई थी। आईएएस एसोसिएशन AAP के आरोपी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग पर अड़ गया था। इससे दिल्ली सरकार और नौकरशाहों में तनातनी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। बाद में अरविंद केजरीवाल ने आईएएस अफसरों पर काम में सहयोग न करने का भी आरोप लगाया था। इसको लेकर मुख्यमंत्री ने उपमुख्यमंत्री के साथ उपराज्यपाल के कार्यालय में धरना भी दिया था। बाद में सीएम केजरीवाल को अधिकारियों को पूरी सुरक्षा देने का वादा करना पड़ा था। हालांकि, अफसर शुरुआत से ही कहते रहे कि उन्होंने कभी भी कामकाज नहीं रोका।