अनुसूचित जाति-जनजाति परिवारों के घर का सपना पूरा करने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को एक विशेष नीति (पूल) बनाने की जरूरत है, ताकि जरूरत पड़ने पर ऐसे फ्लैट संबंधित परिवारों को आबंटित किए जा सकें। संसद की एक विशेष समिति ने केंद्र सरकार को यह सिफारिश की है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अब तक इस श्रेणी के तहत जिन आवासों का आबंटन नहीं हो पाता था, उन्हें अनारक्षित श्रेणी के परिवारों को दे दिया जाता था। समिति ने स्पष्ट कहा है कि ऐसे आवेदकों के लिए एक विशेष पूल तैयार कर, अलग से योजना पेश की जा सकती है, जिससे संबंधित वर्ग के लोगों को सीधा लाभ मिलेगा।
रिपोर्ट में चिंता जताई गई है कि आंबेडकर योजना में रद्दीकरण की दर अधिक रही
रिपोर्ट के अनुसार, बीते 25 वर्षों में इस श्रेणी के आवेदकों को कुल आवासीय इकाइयों का 19.17 प्रतिशत (एससी) और 4.7 प्रतिशत (एसटी) आबंटित किया गया है। यह पहल केवल आंबेडकर आवास योजना और डीडीए की 2019 की विशेष योजना के तहत की गई थी। आंबेडकर योजना में 97.15 प्रतिशत इकाइयाँ एससी और 1.42 प्रतिशत एसटी आवेदकों के लिए आरक्षित थीं। रिपोर्ट में चिंता जताई गई है कि आंबेडकर योजना में रद्दीकरण की दर 44.72 प्रतिशत और विशेष आवासीय योजना में 41 प्रतिशत रही, जिसे समिति ने काफी अधिक माना है।
समिति ने सिफारिश की है कि आवेदकों की संख्या बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार को छूट में राहत, फ्लैट की कीमतों में कटौती और वित्तीय सहायता जैसे प्रावधान करने चाहिए। इस संबंध में शहरी आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को रिपोर्ट भेजने का सुझाव दिया गया है। यह रिपोर्ट डीडीए की सेवाओं, वाणिज्यिक व आवासीय इकाइयों के आबंटन में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को आरक्षण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तैयार की गई है। इसे अनुसूचित जाति और जनजाति कल्याण संबंधी समिति के अध्यक्ष डॉ. फग्गन सिंह कुलस्ते ने लोकसभा में पेश किया। समिति में लोकसभा के 20 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल थे।
इसके अलावा, समिति ने बीते 10 वर्षों में 88 एससी और 36 एसटी श्रेणी के लिए आबंटित दुकानों के मामलों की भी समीक्षा की। समिति ने स्पष्ट किया कि डीडीए ने दरें कम करने के बाद भी आबंटन प्रक्रिया तेज नहीं की है। इसलिए, समिति ने सभी दुकानों के लिए एक विशेष योजना बनाने और पुरानी योजनाओं को इसमें शामिल करने की सिफारिश की है, ताकि उनकी खामियों से सबक लेकर योजना को आम जनता के लिए बेहतर तरीके से लागू किया जा सके। समिति ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में डीडीए को विलंब शुल्क माफ करना चाहिए, ताकि संबंधित वर्ग के लोग दुकानों और वाणिज्यिक परिसरों के आबंटन से वंचित न रहें।
समिति ने सिफारिश की है कि करीब पांच वर्षों में 45 दिनों से अधिक अवधि वाली सभी अस्थायी नियुक्तियों में संबंधित वर्ग को प्राथमिकता दी जाए। इसके लिए संबंधित ठेकेदारों पर दबाव डाला जाए और डीडीए द्वारा किए जाने वाले समझौतों में इस संबंध में एक प्रावधान जोड़ा जाए, ताकि इन वर्गों के लोगों को अवसर मिल सके। इसके अतिरिक्त, सभी सफाई कर्मचारियों को नियमित किया जाए, क्योंकि यह सबसे निचले स्तर का कार्यबल है। सफाई कर्मचारियों की सीधी भर्ती करते समय संविदा पर काम कर रहे कर्मचारियों को वरीयता दी जानी चाहिए।