एचआईवी वायरस की चपेट में आने से हुई एक दलित व्‍यक्ति मरने के बाद भी समाज ने ठुकरा दिया। ओडिशा के एक गांव में स्‍थानीय नागरिकों ने उसका अंतिम संस्‍कार सार्वजनिक शवदाह ग्रह में करने से मना कर दिया था, जिसके बाद उसकी लाश को उसके घर के सामने दफनाया गया। 35 वर्षीय प्रकाश जेना (परिवर्तित नाम) मुंबई में काम करता था, जहां उसे एचआईवी हुआ। जब उसकी हालत बिगड़ी तो वह बालासोर जिले के तेंतेई गांव में लौट आया। उसे कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया जहां शुक्रवार को उसकी मौत हो गई। जब परिवार वाले जेना के शव के अंतिम संस्‍कार के लिए हनसियानीपड़ा स्थित सार्वजनिक शवदाह गृह पहुंचे, तो गांववालों ने जोर दिया कि उन्‍हें शवदाहगृह में नहीं जाना चाहिए। गांववालों के विरोध के बाद, परिवारवालों ने अपने घर के सामने ही जेना का अंतिम संस्‍कार किया।

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मृत एचआईवी पेशेंट के साथ हुआ यह भेदभाव केन्‍द्र सरकार द्वारा एचआईवी और एड्स (रोकथाम और नियंत्रण) बिल, 2014 में संशोधनों को मंजूरी दिए जाने के कुछ ही दिनों बाद हुआ है। इस बिल में एचआईवी से पीड़‍ित लोगों के अधिकारों की रक्षा के प्रावधान किए गए हैं। जिसके तहत इस तरह के लोगों के साथ भेदभाव करने वालों को न्यूनतम तीन महीने और अधिकतम दो साल के कारावास की सजा होगी और एक लाख रुपए तक का जुर्माना देना पड़ेगा।

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने कहा कि विधेयक में राज्यों और केंद्र सरकार के लिए जहां तक संभव हो एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (एआरटी) प्रदान करना अनिवार्य बनाया गया है। विधेयक में उन बातों को सूचीबद्ध किया गया है जिनके आधार पर एचआइवी से संक्रमित लोगों और उनके साथ रह रहे लोगों के साथ भेदभाव करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। इनमें रोजगार, शैक्षणिक संस्थानों, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं, निवास के लिए या किराए पर दी गई संपत्तियों समेत अन्य के संबंध में अस्वीकृति, समाप्ति या अनुचित व्यवहार शामिल है।