कलालयम स्कूल के कलाकारों ने नृत्य रचना ‘मृत मूरत’ पेश की। निर्देशक नंद कुमार की नृत्य रचना ‘मृत मूरत’ मेकअप और परिधान प्रसंग के अनुकूल थी। मिट्टी से लेकर मूर्तिकार के संघर्ष को एक-एक भाव और अभिनय के जरिए कलाकारों ने पेश किया। प्रस्तुति के क्रम में संवाद का प्रयोग भी सुंदर था। कलाकारों का आपसी तालमेल और संयोजन सहज और सरल था।
आधुनिक की ओर से नृत्य समारोह उदय-6 का आयोजन किया गया। श्रीराम सेंटर फॉर आर्ट सभागार में आयोजित समारोह में डॉक्टर कृष्ण कुमार शर्मा ने नृत्य रचना फ्रीडम और लोक और तंत्र पेश किया। इसके अलावा, शशधर आचार्य की नृत्य रचना राधाकृष्ण और नाविक पेश की गई। इसे शुभम आचार्य, हेमंत, पुलकित और गोविंद महतो ने प्रस्तुत किया।
समारोह की पहली शाम किशोर शर्मा की नृत्य रचना ‘अब नहीं’ पेश की गई। तन्वा क्रिएटिव डांस अंसेबल के कलाकारों ने इसे प्रस्तुत किया। नाट्य बैले सेंटर के अजय भट्ट की नृत्य रचना ‘ए ट्रंक्युल हर्ट’ पेश किया गया। इसमें शिरकत करने वाले कलाकार थे-निखिल, शुभम, कृष्णा, समृद्धि, तृप्ति, संदीप, स्वर, आशीष, सुशांत और पंकज।
समकालीन और आधुनिक नृत्य शैली में कलाकारों ने अपनी पेशकश से दूसरी शाम को मनोरंजक बनाया। आधुनिक के निदेशक डॉक्टर कृष्ण कुमार शर्मा की नृत्य रचना ‘लोक और तंत्र’ की पेशकश बहुत समीचीन थी। वोट से लेकर अपराध और प्रशासन की निष्क्रियता को नृत्य के जरिए पेश करना मोहक था। यह व्यवस्था पर एक व्यंग्य कर सच बयां करती है। प्रस्तुति में समकालीन नृत्य के साथ लोक-नृत्य और अभिनय का सहज समावेश दिखा। इसमें डॉक्टर कृष्ण कुमार शर्मा, अभिप्रिया शर्मा, शुभम शर्मा, रेहान, अशद, पूजा, ट्विंकल , मनीष, सूर्यप्रकाश और नीतू ने भाग लिया।
उर्शिला डांस कंपनी के कलाकारों ने नृत्य रचना अद्वैय पेश किया। इसकी नृत्य परिकल्पना भाविनी मिश्र ने की थी। इसमें पद संचालन के साथ-साथ चक्कर और भ्रमरी का प्रयोग मार्मिक था। वहीं सारंगी और तबले के लहरें और ताल पर जीवंत संगीत पर समकालीन नृत्य को पिरोना एक चुनौतीपूर्ण प्रयास था। अर्द्धनारीश्वर से सृष्टि की परिकल्पना करते हुए, स्त्री शक्ति को स्थापित करने का यह प्रयास सुंदर था। नृत्य को रावण तांडव स्त्रोत और रचना ‘लट उलझी सुलझा जा बालमा’ के जरिए पिरोया गया था, उनका यह प्रयोग अच्छा था।
युवा कलाकार राकेश कुमार ने नृत्य रचना पिता पेश किया। उनकी इस प्रस्तुति में पिता और बेटे के रिश्तों को पिरोया गया था। शिशु, बाल, किशोर और युवा अवस्था में दोनों के रिश्तों के उतार-चढ़ाव को बहुत सहज तरीके से दर्शाया गया। पिता के न रहने के दुख को कलाकारों ने बहुत मार्मिक अंदाज में चित्रित किया। हालांकि, नृत्य रचना में उन्होंने अधिक जीवंतता लाने के लिए शैडो का प्रयोग किया था। पर, गर्भवती स्त्री की इस अवस्था को दिखाने की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं जान पड़ी।