दिल्ली में यमुना नदी की साफ-सफाई और उसे कचरा मुक्त बनाने की कार्रवाई जोर-शोर से की जा रही है। दिल्ली सरकार के सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग (आईएफडीसी) को यमुना में कचरे की सफाई के लिए चार मशीनें (फ्लोटिंग स्कीमर्स) तैनात करने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही दिल्ली विकास प्राधिकरण को यह सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिए गए हैं कि यमुना बाढ़ क्षेत्र में मलबा, निर्माण अपशिष्ट या कोई अन्य कचरा न फेंका जाए। इतना ही नहीं, इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाने वाली एजेंसियों पर डीडीए को जुर्माना लगाने की कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए गए हैं।
दिल्ली के मुख्य सचिव धर्मेंद्र की अध्यक्षता में हालिया बैठक में यह भी संभावना जताई गई कि यमुना बाढ़ क्षेत्र में अधिकांश मलबा, निर्माण अपशिष्ट आदि एनएचएआइ, पीडब्लूडी, डीडीए और रेलवे का हो सकता है। इसके अलावा, डीडीए को यमुना के किनारों और तटबंध व ढलानों की मिट्टी को स्थिर करने और कटाव को रोकने के लिए पत्थर पिचिंग के विकल्प पर भी विचार करने के निर्देश दिए गए हैं। यमुना नदी किनारे कचरा और निर्माण मलबा आदि को नहीं डाला जाए, इसको लेकर सरकार पूरी तरह से काम में जुटी है।
निगरानी के लिए प्रादेशिक सेना की तैनाती किया गया है
पिछले दिनों प्रादेशिक सेना की तैनाती करने का निर्णय भी लिया गया था, जो यमुना की बराबर निगरानी और गश्त करने का काम करेगी। हालांकि, यमुना के डूब क्षेत्र की सुरक्षा और उसमें होने वाले अतिक्रमण से लेकर कचरा-मलबे आदि डालने को रोकने के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन करने का निर्णय भी लिया गया। सूत्र बताते हैं कि खुद सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण व जल मंत्री प्रवेश वर्मा ने कहा था कि यह विशेष टास्क फोर्स यमुना में होने वाले अतिक्रमण को रोकने से लेकर डूब क्षेत्र में कचरा या मलबा डालने को रोकने में मदद करेगी। इस पर मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भी आने वाले दिनों में चर्चा कर आगे की रूपरेखा तय कर सकती हैं।
इस बीच देखा जाए तो इस पूरे मामले में एजेंसियों के लचर रवैये पर दिल्ली हाईकोर्ट भी अपनी नाराजगी जता चुका है। इसके बाद से दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने कई एजेंसियों को पूर्व में नोटिस भी जारी किए थे, लेकिन इस पर कोई ठोस कार्रवाई अभी तक नहीं की जा सकी।
बताया जाता है कि यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में खासकर पुलों और रेलवे लाइनों के निर्माण के दौरान निकलने वाले मलबे और निर्माण अपशिष्ट को डाले जाने के मामले ज्यादा सामने आए। मुख्य सचिव की बैठक में यह पता चला कि डूब क्षेत्र में मलबा डालने या किसी तरह का अतिक्रमण करने वाली सरकारी एजेंसियों में एनएचएआइ, पीडब्लूडी और रेलवे के अलावा खुद दिल्ली विकास प्राधिकरण भी शामिल रहा है।