छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कांकेर जिले के आठ गांवों में लगे ऐसे होर्डिंग्स को हटाने की याचिका के मामले में फैसला सुनाया है जिनमें पादरियों के आने पर रोक लगाने की बात लिखी गई थी। अदालत ने कहा है कि जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए लगाए गए ऐसे होर्डिंग्स असंवैधानिक नहीं हैं।

अपने फैसले में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभू दत्ता गुरु की बेंच ने कहा, “ऐसा लगता है कि ये होर्डिंग्स आदिवासी समुदाय के हितों और स्थानीय संस्कृति की विरासत की रक्षा के लिए सावधानी के तौर पर लगाए गए हैं।”

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क्या कहा था याचिकाकर्ता ने?

अदालत में याचिका दायर करने वाले दिग्बल टांडी ने कहा था कि ईसाई समुदाय और उनके धार्मिक नेताओं को ग्रामीण समुदाय से अलग-थलग किया जा रहा है। उन्होंने कहा था कि पंचायत विभाग की ओर से जिला और ग्राम पंचायतों को “हमारी परंपरा हमारी विरासत” नाम से एक शपथ या प्रस्ताव पारित करने का निर्देश दिया गया है, जिसका मकसद ईसाई पादरियों और धर्म बदलकर ईसाई बनने वाले लोगों का गांवों में प्रवेश पर रोक लगाना है।

दिग्बल टांडी ने याचिका में कहा था कि इससे ईसाई समुदाय में डर का माहौल पैदा हो गया है।

राज्य सरकार ने क्या कहा?

अदालत में राज्य सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता वाई.एस. ठाकुर ने कहा कि Panchayats Extension to Scheduled Areas (PESA) Act, 1996 के नियम ग्राम सभाओं को इस बात का अधिकार देते हैं कि वे स्थानीय संस्कृति, देवी-देवताओं के पूजा स्थलों और सामाजिक रीति-रिवाजों की हिफाजत के लिए कदम उठाएं।

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ठाकुर ने अदालत से कहा कि इस तरह के होर्डिंग्स का उद्देश्य केवल दूसरे गांवों के ईसाई धर्म के उन पादरियों को रोकना है जो आदिवासियों का अवैध धर्मांतरण कराने के लिए गांवों में आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि होर्डिंग्स में इस बात को लिखा गया था कि आदिवासियों को बहला-फुसलाकर अवैध धर्मांतरण कराने से उनकी संस्कृति को नुकसान हो रहा है।

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा, “लालच या धोखे से किए जाने वाले जबरन धर्म परिवर्तन से रोकने के लिए लगाए गए होर्डिंग्स को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।”

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