छत्तीसगढ़ विधानसभा में भूपेश बघेल सरकार ने दुर्ग जिले में स्थित एक निजी चिकित्सा महाविद्यालय के अधिग्रहण के लिए बुधवार को विधेयक पेश किया। विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने छत्तीसगढ़ चंदूलाल चंद्राकर स्मृति महाविद्यालय दुर्ग (अधिग्रहण) विधेयक 2021 पेश किया। इसके मुताबिक, दुर्ग जिले के कचांदूर में स्थित संबंधित चिकित्सा महाविद्यालय का नियंत्रण सरकार को सौंपा जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार अस्पताल प्रबंधन को राशि का भुगतान करेगी।
विधेयक में कहा गया है कि राज्य सरकार राशि की गणना के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति करेगी। विशेष अधिकारी चल और अचल संपत्ति का 6 से 12 महीने के अंदर मूल्यांकन करेगा। विधेयक के अनुसार अधिग्रहण की अनिवार्यता को देखते हुए भुगतान योग्य राशि निर्धारित की गई वास्तविक मूल्यांकन राशि की दो गुना होगी। हालांकि, राज्य के मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने इस विधेयक का विरोध किया है। विपक्ष ने इस महाविद्यालय के सीएम भूपेश बघेल के रिश्तेदारों से जुड़ी संपत्ति होने का आरोप लगाते हुए विधेयक वापस लेने की मांग रख दी।
पेश किए गए विधेयक में कहा गया है कि इस चिकित्सा महाविद्यालय की समस्त संपत्तियां सभी अधिभार से मुक्त होकर सरकार में निहित होंगी और देयता के लिए सरकार द्वारा कोई भुगतान नहीं होगा। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि इस महाविद्यालय का अधिग्रहण करने से राज्य शासन पर प्रतिवर्ष लगभग 140 करोड़ रुपये का वित्तीय भार आएगा। विधेयक के अनुसार चिकित्सा महाविद्यालय के अधिग्रहण के बाद महाविद्यालय के कर्मचारी सरकार की सेवा में रहने का दावा तक नहीं कर सकेंगे।
इस बिल को लाने वाले चिकित्सा शिक्षा मंत्री टीएस सिंह देव ने वैल्युएशन से दोगुनी भुगतान राशि के मुद्दे पर सफाई भी दी है। उन्होंने कहा कि यह सरकार की ओर से अनिवार्य अधिग्रहण है। हालांकि, विधानसभा में पेश किए गए विधेयक में कहा गया है कि महाविद्यालय के मालिकों ने वित्तीय दिक्कतों के चलते राज्य सरकार से इसका अधिग्रहण करने के लिए कहा था। उधर सरकारी सूत्रों का कहना है कि इस महाविद्यालय का अधिग्रहण छात्रों के भविष्य को देखते हुए ज्यादा अहम था।
इस मेडिकल कॉलेज की भुगतान राशि ही अकेले विवाद का मुद्दा नहीं है। दरअसल, इस कॉलेज में अनियमितताओं को लेकर भी पहले ही कई बार शिकायतें की जा चुकी हैं। द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा देखे गए दस्तावेजों में सामने आया कि अधिकारी इसे चलाने में की गई गंभीर अनियमितताओं का मुद्दा उठा चुके थे।
जानकारी के मुताबिक, 12 अप्रैल 2018 को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की सालाना बैठक में भी चंदूलाल चंद्राकर कॉलेज पर चर्चा हुई थी। इस बैठक में यह फैसला भी हुआ था कि अवास्तविक मरीज, बिना तैयारी के और जरूरत से कम रेजिडेंट्स की मौजूदगी की वजह से इस कॉलेज को एमबीबीएस की 150 सीटें नहीं दी जाएंगी।
काउंसिल ने इस महाविद्यालय में भर्ती मरीजों और ऑपरेशन थिएटर में किए गए इलाज को लेकर दायर एंट्रीज की भी जांच की थी और इनमें गड़बड़ियों को उजागर किया था। हालांकि, राज्य सरकार के मंत्री विधेयक पेश होने से पहले ही बयान में कह चुके हैं कि कॉलेज के पास MCI की जरूरी मंजूरी और इन्फ्रास्ट्रक्चर मौजूद है।
बता दें कि किसी भी कॉलेज की स्थापना के साथ ही उसे MCI की मंजूरी मिल जाती है, लेकिन इसकी भर्ती और डिग्री मुहैया कराने की प्रक्रिया पहले बैच के ग्रैजुएट होने पर निर्भर करती है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस मामले में कॉलेज को 2018 से ही मान्यता नहीं मिली है।