माहवारी आज भी देश के कई हिस्सों में अभिशाप मानी जाती है। मासिक धर्म के कारण उन्हें अपवित्र समझ लिया जाता है। छूना तो दूर लोग उनके आस-पास भी नहीं भटकते। हाल ही में कुछ ऐसा ही मामला छत्तीसगढ़ के एक गांव में देखने को मिला है। माहवारी के दौरान यहां पर महिलाओं के आने-जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। ऐसे में महिलाओं को अलग से झोपड़ी बनाकर रहना पड़ रहा है।
यह मामला राजनंद गांव के सीता गांव से जुड़ा हुआ है। माहवारी के कारण कुछ महिलाओं की एंट्री पर यहां रोक लगा दी गई है। उन्हें अपने घर तक के अंदर रहने की अनुमति नहीं दी जा रही है, लिहाजा वे गांव के किनारे झोपड़ी बनाकर रह रही हैं। गांव वालों का कहना है कि उनके पुरखे सालों से इन परंपराओं को अपनाते आ रहे हैं, लिहाजा वे भी उन्हें आगे बढ़ा रहे हैं।
राजनंद गांव के मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. मिथिलेश चौधरी ने इस बारे में बताया कि स्वास्थ्य विभाग और परिवार एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी समय समय पर गांव में जाते रहते हैं। वे वहां के लोगों को इस बाबत जागरूक करते हैं। पुरानी पंरपराओं के चलते फैलने वाली बीमारियों और संक्रमण के बारे में वे उन्हें बताते हैं। वे इसके अलावा उन्हें सैनिट्री नैप्किन इस्तेमाल करने की हिदायत भी देते हैं।
माहवारी के वक्त महिलाओं से ऐसे भेदभाव के मामले न केवल देश के ग्रामीण इलाकों में देखने को मिले, बल्कि केरल जैसे राज्य के नामी सबरीमाला मंदिर में भी नजर आया। अप्रैल में बीते साल मंदिर के गर्भ गृह में कथित तौर पर तीन मासिक धर्म वाली महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाई गई थी, जिसके बाद काफी बवाल मचा था।
बाद में इस मामले पर मंदिर प्रबंधन का काम संभालने वाले बोर्ड प्रमुख ने शर्मनाक बयान दिया था। ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के अनुसार, त्रावणकोर देवस्थानम बोर्ड (टीडीबी) के प्रमुख प्रायर गोपाल कृष्णन ने कहा था, “महिलाओं के मंदिर में प्रवेश देने की मंजूरी पर वहां अनैतिक गतिविधियां बढ़ेंगीं और वह थाईलैंड सरीखे सेक्स पर्यटन स्थल में तब्दील हो जाएगा।”