सीबीआई ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के एक मामले में यहां की एक विशेष अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया है। इससे कुछ ही घंटे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें कोई राहत देने से इनकार कर दिया था और उनसे पूछताछ या गिरफ्तारी पर से अंतरिम रोक हटा ली थी। 82 वर्षीय कांग्रेसी नेता सहित नौ व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 109 और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कथित अपराधों के लिए आरोपपत्र विशेष न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार गोयल के समक्ष दाखिल किया गया।
इसमें एलआईसी एजेंट आनंद चौहान का भी नाम है जो वर्तमान में न्यायिक हिरासत में है। चौहान को प्रवर्तन निदेशालय ने गत वर्ष नौ जुलाई को वर्तमान मामले से संबंधित एक अलग धनशोधन मामले में गिरफ्तार किया था। यह घटनाक्रम दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी की वह अर्जी खारिज होने के कुछ घंटे बाद आया है जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ सीबीआई की ओर से दर्ज आय से अधिक सम्पत्ति मामले को रद्द करने की मांग की थी। न्यायमूर्ति विपिन सांघी ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के एक अक्तूबर, 2015 के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया, जिसमें सीबीआई को अदालत की अनुमति के बिना इस मामले में गिरफ्तार करने, पूछताछ करने या आरोपपत्र दायर करने से रोका गया था।
सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में आरोप लगाया है कि वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी ने लगभग 10.30 करोड़ रुपये की संपत्ति अर्जित की। यह उनकी ईमानदारी से होने वाली कमाई से 192 प्रतिशत ज्यादा है। इस मामले में सात लोगों को षड़यंत्रकर्ताओं के रूप में आरोपी बनाया गया है। आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का समय वीरभद्र सिंह के 2009 से 2012 के बीच केंद्रीय मंत्री रहने के दौरान का है। इसके चलते मामला दिल्ली में दर्ज किया गया।
इससे पहले ईडी ने वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी की आठ करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति को कब्जे में लेने का फैसला किया था। अदालत ने भी इस फैसले को मंजूरी दे दी थी। धनशोधन निवारण कानून (पीएमएलए) के प्रावधानों के तहत एजेंसी ने इसी साल मार्च में कुछ एलआईसी पॉलिसियां, बैंक में जमा राशि, एक सावधि जमा और दक्षिण दिल्ली के पॉश जीके इलाके में एक इमारत के दो मंजिलों को कुर्क करने का आदेश दिया था।