नवजोत सिंह सिद्धू के राज्यसभा से इस्तीफे से अगले दिन (19 जुलाई) को उनकी पत्नी ने यह साफ कर दिया कि सिद्धू भाजपा भी छोड़ चुके हैं। तो क्या यह भाजपा के लिए झटका है या खुद सिद्धू ने अपना नुकसान किया है?

नुकसान सिद्धू का-
छवि: सत्र के पहले ही दिन इस्‍तीफा। खुद आगे नहीं आए, पत्‍नी मीडिया से कर रहींं बात। तीन महीने में ही इस्‍तीफा, यानी यह संदेश कि संसद का सम्‍मान नहीं करते।
कमजोर स्थिति: राजनीतिक तौर से सिद्धू और कमजोर भी हो सकते हैं। पंजाब में उनके लिए विकल्‍प सीमित हैं। भाजपा छोड़ ही चुके हैं, अकाली दल में जा नहीं सकते, आप में भी उन्‍हें लेने को लेकर खेमेबंदी है। कांग्रेस में शायद वह मजबूरी में ही जाएं।

…तो इन चार कारणों से नवजोत सिंह सिद्धू ने छोड़ी भाजपा!

भाजपा के लिए नहीं है झटका-
सिद्धू अपने जुमलों और वाकपटुता के चलते लोकप्रिय हो सकते हैं, पर जमीनी आधार वाले नेता कतई नहीं हैं। सांसद रहते हुए उन्‍होंने न सदन में और न क्षेत्र में ऐसा कुछ उल्‍लेखनीय किया कि जनता के दिलों में जगह बना सकें। सिद्धू भाजपा और अकाली दल के रिश्‍तों के बीच दीवार बन रहे थे। यह दीवार अपने आप गिर गई।
2014 लोकसभा चुनाव के बाद से ही एक तरह से सिद्धू लगातार भाजपा से नाराज चल रहे थे। यह नाराजगी पंजाब में भाजपा की संभावनाओं को मजबूत तो कतई नहीं कर सकती थी। अब यह कारण ही खत्‍म हो गया।
सिद्धू पंजाब में भाजपा के लिए काम करते लग नहीं रहे थे। पार्टी ने उन्‍हें राज्‍य की कोर कमेटी में शामिल किया, पर वह बैठक में आते ही नहीं थे। एक बैठक में उनकी पत्‍नी ने कहा- मैं आ गई, ये क्‍या कम है। वह अकाली दल से भाजपा की दोस्‍ती के ही खिलाफ थे, जबकि पार्टी अकाली को छोड़ कर चुनाव लड़ने की नहीं सोच सकती।

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आप का फायदा-
आप अगर सिद्धू को लेती भी है तो हो सकता है सौदेबाजी के लिहाज से वह मजबूत स्थिति में नहीं होंगे। राज्‍य में उनके लिए विकल्‍प सीमित हैं। आप का एक खेमा वैसे भी उन्‍हें लिए जाने के खिलाफ है और खुद सिद्धू पूर्व में केजरीवाल के खिलाफ बयानबाजी कर चुके हैं।