देश के छोटे बड़े शहरों में भारी-भरकम स्कूल बैग, टिफिन बॉक्स तथा पानी की बोतल लेकर झुकी कमर और तिरछी चाल चलते मासूम स्कूल में जाते या आते दिख जाएंगे। इन मासूमों से स्कूल बैग सहजता से उठता नहीं, लेकिन वे स्कूल बैग ढोने के लिए मजबूर हैं। सीबीएसई बस्ते का बोझ कम करने के लिए निर्देश जारी करती है लेकिन इनका अनुपालन सुनिश्चित करना अभी भी दूर की कौड़ी बना हुआ है।
जाने माने शिक्षाविद एवं वैज्ञानिक प्रो. यशपाल के नेतृत्व वाली समिति ने स्कूली बच्चों के पाठ्यक्रम के बोझ में कमी की सिफारिश की थी, लेकिन दो दशक से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है । केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने भी स्कूल बैग के भार को कम करने की जरूरत बताते हुए कहा है कि कक्षा एक या दो के छात्रों को गृहकार्य न दिया जाए और उच्च कक्षाओं में भी समयसारणी के अनुरूप ही केवल जरूरी पुस्तकें लाना सुनिश्चित किया जाए।
एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जे एस राजपूत ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों को अपनी किताबें चुनने का हक तो मिल गया है, लेकिन यह अच्छा व्यापार बन कर बच्चों के शोषण का जरिया बन गया है। ये स्कूल अधिक मुनाफा कमाने की फिराक में बच्चों का बस्ता भारी करते जा रहे हैं।
एम्स के हड्डी रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश मल्होत्रा ने बताया कि वजनी बैग उठाने के कारण बच्चा झुककर चलने लगता है। अपने वजन से 10 फीसदी से ज्यादा का बोझ बच्चे के लिए नुकसानदेह है।
इससे कंधे व पीठ पर प्रतिकूल असर पड़ता है। स्थायी तौर पर चाल भी बदल जाती है। आज बच्चे अपने वजन के 30 प्रतिशत से अधिक वजन बस्ते के रूप में पीठ पर लादने को मजबूर हैं। एसोचैम के एक सर्वे के अनुसार, बस्ते के बढ़ते बोझ के कारण बच्चों को नन्ही उम्र में ही पीठ दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसका हड्डियों और शरीर के विकास पर भी विपरीत असर होने का अंदेशा जाहिर किया गया है।
दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बंगलूर, मुंबई और हैदराबाद जैसे दस शहरों में करवाए गए इस सर्वे में कहा गया है कि काफी संख्या में बच्चे अपने वजन का 35 प्रतिशत बोझ बैग के रूप में रोजाना पीठ पर ढोते हैं। उसके अलावा उन्हें अपनी रुचि के अनुसार स्केट्स बैग तथा क्रिकेट किट जैसा भारी सामान भी किसी न किसी दिन लादना पड़ता है। ऐसे में बच्चों का किसी तरह के शारीरिक तनाव से प्रभावित होना स्वाभाविक है।
ऐसी शिकायतें देश के विभिन्न हिस्सों से आमतौर पर मिलती हंै कि स्कूलों के लिए एनसीईआरटी द्वारा तैयार पुस्तकें शैक्षणिक सत्र का काफी समय गुजरने के बाद भी बच्चों तक नहीं पहुंचतीं। जाहिर है कि बच्चों को निजी प्रकाशकों की विभिन्न पुस्तकों एवं कुंजियों का सहारा लेना पड़ता है। ऐसे में उन पर पढ़ाई का बोझ कम होने की बात करना बेमानी ही होगा।
हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसइ) ने बच्चों के बस्ते का बोझ कम करने के मकसद से सुझाव दिया है कि शिक्षकों को उच्च कक्षा के छात्रों को वजनदार पुस्तकें लाने के प्रति हतोत्साहित करना चाहिए जबकि स्कूलों को कक्षा दो तक स्कूल में ही पुस्तकें रखनी चाहिए। सीबीएसई के परिपत्र में कहा गया है कि सीबीएसई ने कई सुझाव दिए हैं जिसमें स्कूलों के प्रमुखों और शिक्षओं को यह सुझाव दिया गया है कि उच्च कक्षा के छात्रों को समयसारणी के अनुरूप ही पुस्तकें लाने को कहा जाए और स्कूलों में वजनदार सहयोगी पाठ्यपुस्तकें या पाठ्यसामग्री लाने को हतोत्साहित करना चाहिए। इसमें कहा गया है कि जितना संभव हो सूचना संचार प्रौद्योेगिकी (आइसीटी) आधारित सीखने की पद्धति को प्रोत्साहित करना चाहिए। होमवर्क काफी अधिक न हो और अकादमिक संयोजक या पर्यवेक्षक इसकी निगरानी करें। पाठ्येत्तर गतिविधियां प्रतिदिन स्कूलों में होनी चाहिए ।