खूंखार डाकुओं के कभी पनाहगाह रहे चंबल में एक वक्त खासी तादाद में गिद्ध पाए जाते थे। वक्त की मार ने यहां से गिद्धों का सफाया कर दिया लेकिन एक बार फिर से चंबल में इनके आने का सिलसिला शुरू हुआ है। इस दफा हिमालयी गिद्ध यहां अपना बसेरा बना रहे हैं। इटावा के सामाजिक वानिकी की लखना रेंज के उप रेंज वन अफसर विवेकानंद दुबे ने जनसत्ता को बताया कि हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले गिद्ध चंबल इलाके को अपना बसेरा बना रहे हैं। छह जून को लवेदी थाना क्षेत्र के महात्मा गांधी इंटर कॉलेज परिसर मे मिले दुर्लभ प्रजाति के गिद्ध का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि यह गिद्ध अन्य गिद्धों से हटकर है। उन्होंने बताया कि लवेदी मे मिला यह गिद्ध छह माह से अधिक उम्र का नहीं लग रहा है। अभी यह बच्चा ही है। इसकी तस्वीरों को पर्यावरण विशेषज्ञों के अलावा वन अधिकारियों के पास भेजा गया है। उन्होंने इसके हिमालयी गिद्ध होने की पुष्टि की है। इस गिद्ध को लखना वन रेंज मे रखने के बाद 24 जून की सुबह वन विभाग के बड़े अफसरो के निर्देश पर बड़े पिंजड़े में बंद कर के वन रक्षक रामसेवक और चंद्रमोहन के जरिए कानपुर चिड़ियाघर भेज दिया गया है। चिड़ियाघर भेजा गया गिद्ध पूरी तरह से फिलहाल सुरक्षित है।
उन्होने बताया कि लखना रेंज के ही सारंगपुरा के बीहड़ में भी पिछले साल 23 दिसंबर को इसी प्रजाति का एक विशाल गिद्ध मिला था। यह चलने फिरने में काफी लाचार था। माना जा रहा है कि उसे जंगली जानवरों के कारण चोट आई होगी। तब यह माना गया था कि हिमालयी इलाके से भटक कर चंबल में यह गिद्ध आ पहुंचा है लेकिन 25 दिसंबर को इसकी मौत हो गई। मौत के मुंह में समाया वह गिद्ध करीब आठ फुट लंबा और 15 किलो वजनी था। दुबे को दावा है कि छह जून को चलने में असमर्थ जो गिद्ध मिला वह इसी इलाके में कहीं जन्मा था क्योंकि जितना छोटा यह पक्षी है वह हिमालयी क्षेत्र से भटक कर चंबल इलाके तक नहीं आ सकता है। 23 दिसंबर को मिले गिद्ध से निश्चित तौर पर इसका कोई न कोई संबंध हो सकता है। यह गिद्ध उसी परिवार का सदस्य हो सकता है। उनका दावा है कि किसी हिमालयी गिद्ध परिवार ने चंबल में कहीं अपना घोंसला बना रखा है। वन रक्षकों और ग्रामीणों की मदद से उसके आशियाने को खोजने कोशिश की जा रही है।
वनकर्मी रामलखन का कहना है कि अभी कुछ दिन पहले जब हमारी टीम खितौरा गांव के आसपास से गुजर रही थी उसी समय पिछले दिनों मरे गिद्ध जैसा दूसरा गिद्ध भी उड़ता हुआ देखा गया। वन टीम ने उसके नीचे आने का इंतजार भी किया लेकिन वह काफी दूर जाने के बाद उतरा। जब हम लोग वहां पहुंचे तो वह उड़ चुका था। पर्यावरण संस्था सोसाइटी फार कंजर्वेशन के सचिव संजीव चौहान का दावा है कि ऐसा हो सकता है कि सर्दी के मौसम में हिमालय क्षेत्र से किसी तरह गिद्ध का जोड़ा चंबल में आ गया है। उसके बाद उसने यहीं बच्चों को जन्म दिया हो। जनवरी माह गिद्धों के प्रजनन का काल है ।सफाई कर्मी के रूप में प्रचलित गिद्धों के ऊपर संकट 1990 के बाद से शुरू हुआ माना जाता है। चंबल में इससे पहले 2003 तक गिद्धों की तीन प्रजातियों को देखा जाता रहा है, इनमें लांगबिल्डबल्चर, वाइटबैक्डबल्चर, किंगबल्चर है, जो बड़ी तेजी से विलुप्त हुए जब कि इजफ्सियनबल्चर लगातार देखे जाते रहे है। इनके उपर किसी तरह का प्रभाव नजर नहीं आया।
गिद्धों की संख्या काफी कम हुईं!
गिद्ध के संरक्षण की दिशा में काम कर रही वर्ल्ड कंजर्वेशन यूनियन की पहल के बाद वर्ष 2002 में इसे वन्य जीव अधिनियम के तहत इसके शिकार को प्रतिबंधित करते हुए इसे शेड्यूल वन का दर्जा दिया गया।
’80 के दशक में एशिया के देशों में गिद्धों की सर्वाधिक संख्या भारत में ही थी।
’3000 रह गई है शोध के मुताबिक भारत, नेपाल और पाकिस्तान में गिद्धों की संख्या
’8 करोड़ 50 लाख थी अस्सी के दशक में गिद्धों की संख्या।
’99 फीसद की गिरावट आई है पिछले एक दशक के दौरान गिद्धों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से। जानकार बताते हैं कि जिस तेजी के साथ गिद्ध गायब हुआ ऐसा अभी तक कोई जीव गायब नहीं हुआ ।