बंबई हाई कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार से जानना चाहा कि किस नीति के तहत उबर और ओला जैसी कंपनियां राज्य में चल रही हैं और कैसे उन्हें पर्यटक परमिट पर चलने की अनुमति दी जा रही है। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति बीपी कोलाबावाला की खंडपीठ एसोसिएशन आॅफ रेडियो टैक्सीज की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस एसोसिएशन में मेरू, मेगा और टैब कैब्स जैसी कंपनियां शामिल हैं, जो ओला और उबर जैसी वेबसाइट और एप्प आधारित कैब कंपनियों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की मांग कर रही हैं। याचिका में कहा गया है कि ये कैब कंपनियां पर्यटक परमिट पर चल रही हैं, न कि राज्य में दूसरी टैक्सियों की तरह इलेक्ट्रॉनिक मीटर से, इसीलिए किराए पर भी कोई नियमन नहीं है।
राज्य सरकार के वकील ने अदालत से कहा कि इस मुद्दे पर वे योजना तैयार करने पर विचार कर रहे हैं। न्यायमूर्ति धर्माधिकारी ने कहा कि ये कैब (उबर और ओला) टैक्सी स्टैंड पर नहीं रुकतीं, इस पर अनुमति नहीं है, वे आपके नियमों का पालन नहीं करतीं। आपको इस पर विस्तार से जानकारी देने की जरूरत है। इन कैब सेवाओं पर निगरानी रखने की कोई व्यवस्था नहीं है। ये सब कब शुरू हुआ? आपने सड़कों पर केवल कारों की संख्या बढ़ा दी, जिससे अफरा-तफरी है। पीठ ने सरकार को निर्देश दिया कि वह हलफनामा दायर करे, जिसमें उसे दिखाना होगा कि किस नीति के तहत ऐसी कैब को चलने की अनुमति दी जाती है। अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख दो सितंबर तय की है।

