बाम्बे हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान ऐसा आदेश दिया है, जिससे कस्टम डिपार्टमेंट को दो करोड़ की चपत लगी है। हाईकोर्ट ने इस मामले को 23 साल तक लटकाए रखने के लिए कस्टम विभाग के खिलाफ ये आदेश दिया है।
बंबई उच्च न्यायालय ने कस्टम को ये आदेश दिया कि सीमा शुल्क आयुक्त के पास एक कंपनी की तरफ से जमा की गई 2 करोड़ की राशि को वापस कर दे। कोर्ट का कहना है कि चुकि सीमा शुल्क विभाग द्वारा शुरू की गई कार्यवाही में अंतिम आदेश देने में 23 साल की देरी हुई थी इसलिए ये पैसे पर उनका हक नहीं है।
बार एंड बेंच के अनुसार बाम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को कानून के उल्लंघन के लिए कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है, लेकिन उनके पास इसे समाप्त करने के लिए समय चुनने और अपनी सुविधा के अनुसार कार्यवाही समाप्त करने का अधिकार नहीं है।
अदालत ने कहा कि “यह सत्ता का एक मनमाना प्रयोग होगा यदि 1997 में शुरू की गई कार्यवाही को दो दशकों से अधिक समय तक उनके तार्किक निष्कर्ष पर नहीं ले जाया जाता है और फिर इसके शीघ्र निष्कर्ष के लिए प्रार्थना की जाती है, जैसे ही मामला इस कोर्ट के पोर्टल में प्रवेश करता है”।
मामले को समझने के बाद बेंच ने सीमा शुल्क आयुक्त को 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ 2 करोड़ की राशि वापस करने का निर्देश दिया। मिली जानकारी के अनुसार यह मामला 30 अप्रैल, 1997 का है। एक कंपनी पर इस आधार पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था कि कंपनी ने अपने व्यापार में सीमा शुल्क अधिनियम का उल्लंघन किया था। जांच के दौरान कंपनी के परिसरों में छापेमारी भी की गई थी।
कंपनी के निदेशकों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें 10 अगस्त, 1995 को 68 लाख की राशि का भुगतान करने के लिए मजबूर किया गया था, जिसके बाद सीमा शुल्क विभाग के अधिकारी जमानत का विरोध नहीं करने के लिए सहमत हुए। बाद के मौकों पर भी, निर्देशकों को 32 लाख और 1 करोड़ रुपये खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
